| 
मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से .jpg) 
एक गीत 
"बदल जाते हैं" 
युग के साथ-साथ, सारे हथियार बदल जाते हैं। 
नौका खेने वाले, खेवनहार बदल जाते हैं।। 
प्यार मुहब्बत के
  वादे सब निभा नहीं पाते हैं, 
नीति-रीति के
  मानदण्ड,
  व्यवहार बदल जाते हैं। 
"कंगाली में आटा
  गीला" भूख बहुत लगती है, 
जीवनयापन करने के, आधार बदल जाते हैं। 
जप-तप, ध्यान-योग, केबल, टीवी-सीडी करते हैं, 
पुरुष और महिलाओं
  के संसार बदल जाते हैं। 
क्षमा-सरलता, धर्म-कर्म ही सच्चे आभूषण हैं, 
आपाधापी में
  निष्ठा के,
  तार बदल जाते हैं। 
फैसन की अंधी
  दुनिया ने,
  नंगापन अपनाया, 
बेशर्मी की
  ग़फ़लत में,
  शृंगार बदल जाते हैं। 
माता-पिता तरसते
  रहते, अपनापन पाने को, 
चार दिनों में
  बेटों के,
  घर-बार बदल जाते हैं। 
भइया बने पड़ोसी, बैरी बने ज़िन्दग़ीभर को, 
भाई-भाई के
  रिश्ते और प्यार बदल जाते हैं। | 
Followers
Saturday, December 7, 2013
"बदल जाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
 
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
युग के साथ-साथ, सारे हथियार बदल जाते हैं।
ReplyDeleteनौका खेने वाले, खेवनहार बदल जाते हैं।।
बहुत सुन्दर रचना है।