मेरे काव्य संग्रह "सुख का सूरज से
एक गीत
"नया घाघरा"
रूप कञ्चन कहीं है, कहीं है हरा।।
पल्लवित हो रहा, पेड़-पौधों का तन,
हँस रहा है चमन, गा रहा है सुमन,
नूर ही नूर है, जंगलों में भरा।
रूप कञ्चन कहीं है, कहीं है हरा।।
देख मधुमास की यह बसन्ती छटा,
शुक सुनाने लगे, अपना सुर चटपटा,
पंछियों को मिला है सुखद आसरा।
रूप कञ्चन कहीं है, कहीं है हरा।।
देश-परिवेश सारा महकने लगा,
टेसू अंगार बनकर दहकने लगा,
सात रंगों से सजने लगी है धरा।
रूप कञ्चन कहीं है, कहीं है हरा।।