सीख
का संगम है देवम बाल उपन्यास
लगभग
दो माह पूर्व मुझे “देवम बाल उपन्यास” की प्रति डाक
से उपन्यासकार आनन्द विश्वास ने भेजी थी। लेकिन अपनी अपरिहार्य व्यस्तता के कारण इसके बारे में कुछ भी नहीं लिख
पाया। पिछले तीन दिनों से मैं इस बाल सुलभ कृति को पढ़ता रहा और आज थोड़ा समय
निकालकर कुछ शब्द लिखने का प्रयत्न कर रहा हूँ।
साहित्यकार
मुझे समय-समय. पर अपनी कृतियाँ भेंट करते रहे हैं। उन पर कलम भी चलाता रहा हूँ मगर
देवम बाल उपन्यास को पढ़कर मुझे प्रसन्नता के साथ-साथ यह अनुभूति भी हुई है कि यदि
साहित्यकार चाहे तो समाज को बदल सकता है। खास तौर से बच्चों को क्योंकि वे ही
हमारी भावी विरासत हैं।
उपन्यासकार
आनन्द विश्वास ने छोटी-छोटी घटनाओं को बालक देवम के माध्यम से एक बाल उपन्यास का
रूप दिया है। जिनसे न केवल बच्चों को अपितु बड़ों को भी शिक्षा मिलती है।
इस
कृति में माला के रूप में 13 जीवनोपयोगी घटनाओं के साथ 14वीं कड़ी के रूप में लेखक
ने एक कविता का भी मनका पिरोया है-“बुरा न बोलो बोल रे...”
यह
तो मैं नहीं जानता कि इस उपन्यास के नायक “देवम” से लेखक
का क्या रिश्ता-नाता है, मगर इतना जरूर है कि इसका नायक “देवम” एक
आदर्श नायक है।
कृति
की प्रस्तावना में लेखक ने लिखा है-
“माँ, बालक की प्रथम गुरू
होती है। संस्कारबालक को माँ से ही प्राप्त होते हैं। अच्छे संस्कार ही तो बालक के
चरित्र निर्माण के आधार स्तम्भ होते हैं।“
उपन्यासकार ने इस उपन्यास की शुरूआत की है-“देवम बगीचे में”। जिसमें बगीचे को परिवार का अंग बताया गया है।
जिस प्रकार परिवार के सभी सदस्यों के साथ व्यवहार किया जाता है उसी प्रकार का
व्यवहार देवम भी अपने बगीचे के साथ करता है।
“... अच्छी संस्कृति ही अच्छे संस्कारों की आधारशिला
होती है।
रातरानी, मोगरा और लिली से हाय-हैल्लो कर, जैसे
ही वह छुईमुई की ओर आगे बढ़ता, वैसे ही वह मुर्झाने लगती।
तो वह कहता, अरे भाई, तुम मुझसे क्यों डरते हो?
मुझसे डरने की जरूरत नहीं है। मैं तो तुम्हारा दोस्त ही हूँ तो फिर डरना कैसा?...”
बगीचे के सभी बिरुओं से नायक शुभम का मित्र के
रूप में व्यवहार करना और उनको खिलखिलाते हुए देखने का भाव यह सन्देश देता है कि
परिवार में मित्रता का भाव विद्यमान रहना चाहिए।
उपन्यास में दूसरी घटना को “श्री क्षय पारो” के नाम
से समाविष्ट किया गया है। जिसमें देवम और उसके साथी मैदान में क्रिकेट खेल रहे हैं।
देवम ने बॉल पर जोर का शॉट मारा तो गेंद मैदान की दीवार के पार चली गयी। जहाँ पर
झोंपड़ी में पलने वाले निर्धन बालकों की नजर जब बॉल पर पड़ी तो एक आठ साल के बच्चे
रजत ने अपनी बहन से कहा कि पारो देख कितनी सुन्दर गेंद है। देवम के साथी कहते रहे
कि हमारी गेंद वापिस करो मगर शुभम ने खुशी-खुशी वह गॆंद पारो को दे दी और अपने
मम्मी-पापा से कह कर ऐसे बालकों को विद्यालय में भी दाखिला दिलाया। अर्थात् समाज
में सम्वेदना का भाव जाग्रत करने की सीख यह कड़ी देती है।
तीसरी कड़ी में चाचा नेहरू के जन्मदिवस पर “फूल नहीं तोड़ेंगे हम” सन्देश देते हुए कुछ आख्यानकों को प्रस्तुत किया गया है।
“देवम अपने आप को नहीं समझा पा रहा था। वह सोच रहा था कि मम्मी कहतीं हैं कि
हमें फूल नहीं तोड़ना चाहिए। पापा कहते हैं- हमें फूल नहीं तोड़ना चाहिए। मैडम कहतीं हैं- हमें फूल नहीं तोड़ना चाहिए। और मेरा मन भी कहता है-हमें
फूल नहीं तोड़ना चाहिए।
तो
फिर चाचा नेहरू हर रोज गुलाब का एक फूल तोड़कर अपने कोट पर क्यों लगाते थे?
क्यों
हर रोज गुलाब और अन्य फूलों की अनगिन मालाएं मन्दिर, मस्जिद और गुरूद्वारों में
चढ़ाई जाती हैं? क्या ये फूलों की बलि नहीं है?....”
समाज में आये दिन धरना-प्रदर्शन होता रहता है
जिसमें सरकारी सम्पत्ति के सात-सात जन हानि भी हो जाती हैं। इसी पर देवम के माध्यम
से लेखक ने अभिनव सन्देश देने का प्रयास किया है-
“...एक छोटी सी नादानी-नासमझी कितना बड़ा अहित कर सकती है, कितने लोगों को कष्ट
पहुँचा सकती है....।“
“स्कूल पिकनिक” के बहाने शुभम के माध्यम से लेखक ने
सन्देश दिया है कि किस प्रकार शुभम ने अपनी
सहपाठिनी के जीवन को बचाने में सफल रहा
है -
“इधर पायल पानी में डूबने लगी। सहेलियों ने जोर-जोर से बचाओ..बचाओ...चिल्लाना
शुरू किया।
तभी देवम का ध्यान डूबती पायल की ओर गया। उसने
तुरन्त ही गजल और शीला का दुपट्टा लेकर उनको आपस में बाँधकर.....। इस बार पायल ने
दुपट्टे को पकड़ लिया...।“
अगली
कड़ी में उपन्यासकार ने “चिड़िया फुर्र...” शीर्षक से यह बताने की कोशिश की है कि माता
पिता कितने प्यार से सन्तान को पालते हैं लेकिन उनके पर निकलते ही वह सारे रिश्ते
नाते तोड़कर फुर्र हो जाते हैं।
उपन्यासकार आनन्द विश्वास ने वाणी पर संयम,
बर्थ-डे गिफ्ट, वाद-विवाद प्रतियोगिता, बहादुर देवम, देवम की चतुराई, अक्षर-ज्ञान गंगा,
आई हेट यू पापा जैसे शीर्षकों से बालकों और समाज को शिक्षा देने का प्रयास किया है।
अन्त में इतना जरूर कहना चाहूँगा कि इस बाल
उपन्यास में रोचकता और जिज्ञासा अन्त तक बनी रही है। जो कि उपन्यास की पहली
विशेषता होती है।
“देवम” बाल
उपन्यास को डायमंड पाकेट बुक्स (प्रा.) लि. नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया
है। जिसका कॉपीराइट लेखकाधीन है। पेपरबैक वाले इस उपन्यास में 128 पृष्ठ हैं और इसका
मूल्य मात्र 100/- रुपये है।
उपन्यास की विशेषता यह है कि इसमें कहीं पर भी अनावश्यकरूप से खाली स्थान छोड़कर
पृष्ठों की बर्बादी नही की गई है।
“देवम” बाल
उपन्यास को सांगोपांग पढ़कर मैंने अनुभव किया है कि इसमें सीधा और सरल भाषिक
सौन्दर्य है। जो पाठकों के हृदय पर सीधा असर करता है।
मुझे
पूरा विश्वास है कि “देवम बाल उपन्यास” से न केवल बालक अपितु
सभी वर्गों के पाठक भी लाभान्वित होंगे और प्रस्तुत कृति समीक्षकों की दृष्टि से भी
उपादेय सिद्ध होगी।
यह
कृति आनन्द विश्वास, न्यू अशोक नगर, मैट्रो स्टेशन के पास, मयूर विहार, फेस-1 (एक्सटेंशन),
नई दिल्ली-110 096, मोबाइल-09898529244 से प्राप्त की जा सकती है। यह पुस्तक Dimond Books, FlipKart, HomeShop 18, IndiaTimes, BookAdda, IndiaPlaza, InfiBeam, URead, NBC India पर भी विक्रय के लिये उपलब्ध है।
समीक्षक
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
कवि
एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर
(उत्तराखण्ड) 262
308
E-Mail .
roopchandrashastri@gmail.com
Website. http://uchcharan.blogspot.com/
फोन-(05943)
250129
मोबाइल-09368499921
आदरणीय शास्त्री जी के द्वारा मेरे उपन्यास देवम बाल-उपन्यास की समीक्षा करने के लिये मैं अन्तः मन से ऋणी हूँ। बेहद व्यस्त समय में से समय निकाल पाना आसान नहीं होता है। पुनः कोटि-कोटि नमन।
ReplyDeleteयह पुस्तक Dimond Books, FlipKart, HomeShop 18, IndiaTimes, BookAdda, IndiaPlaza, InfiBeam, URead, NBC India पर भी विक्रय के लिये उपलब्ध है।
आपका
आनन्द विश्वास
खूबसूरत समीक्षा
ReplyDelete