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Saturday, March 19, 2011

"उस होली की याद अभी भी ताजा है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

उस होली की याद अभी भी ताजा है!

लगभग 37 साल पुरानी बात है। उस समय मेरी नई-नई शादी हुई थी! पहली होली ससुराल में मनानी थी। इसलिए मैं और मेरी श्रीमती जी होली के एक दिन पहले ही रुड़की पहुँच गए थे।

उस समय मेरी इकलौती साली का विवाह नहीं हुआ था। उसे भी जीजाजी के साथ होली खेलने की बहुत उमंग चढ़ी थी। रात में खाना खाकर सभी लोग एक बड़े कमरे में इकट्ठे हो गये। उस कमरे में छत पर लगे बिजली के पंखे के साथ तीन गुब्बारे लटके हुए थे।

सभी लोग ढोल-मंजीरे के साथ गाना गाने में और हँसी ठिठोली में मशगूल थे।तभी मेरी सलहज साहिबा ने मुझे डांस करने के लिए राजी कर लिया और नाच-गाना होने लगा। मेरी साली तो न जाने कब से इस मौके की फिराक में थी।

जैसे ही मैं पंखे से लटके गुब्बारों के नीचे आया साली ने सेफ्टीपिन से इन गुब्बारों को फोड़ दिया और बहुत गाढ़े लाल-हरे और बैंगनी रंग से मैं सराबोर हो गया।

आज भी वो होली मुझे भुलाए नहीं भूलती!

Tuesday, March 15, 2011

"श्रीमद्भागवद्गीता से ..............."

श्रीमद्भागवद्गीता के सातवें अध्याय के २१ वें श्लोक में भगवान प्रत्येक देवता के प्रति श्रद्धा का बखान कर रहे हैं। स्वामी रामसुखदास जी ने इसकी बहुत ही सुंदर व्याख्या की है ।
श्लोक

जो- भक्त जिस -जिस देवता का श्रद्धा पूर्वक पूजन करना चाहता है ,उस- उस देवता के प्रति मैं उसकी श्रद्धा को दृढ़ कर देता हूँ ।

व्याख्या

भगवान कहते हैं ------जो- जो मनुष्य जिस- जिस देवता का भक्त होकर श्रद्धा पूर्वक भजन -पूजन करना चाहता है उस -उस मनुष्य की श्रद्धा उस -उस देवता के प्रति में अचल कर देता हूँ । वे दूसरों में न लगकर मेरे में ही लग जायें -------ऐसा मैं नही करता। यद्यपि उन देवताओं में लगने से कामना के कारण उनका कल्याण नही होता ,फिर भी मैं उनको उनमें लगा देता हूँ तो जो मेरे में श्रद्धा - प्रेम रखते हैं ,अपना कल्याण करना चाहते हैं ,उनकी श्रद्धा को मैं अपने प्रति कैसे दृढ़ नही करूंगा अर्थात अवश्य करूंगा, कारण कि मैं प्राणिमात्र का सुहृद हूँ ।
इस पर शंका होती है कि आप सबकी श्रद्धा अपने में ही क्यूँ नही दृढ़ करते?इस पर भगवान मानो ये कहते हैं कि अगर में सबकी श्रद्धा को अपने प्रति दृढ़ करूँ तो मनुष्यजन्म कि स्वतंत्रता और सार्थकता कहाँ रही ?तथा मेरी स्वार्थपरता का त्याग कहाँ हुआ? अगर लोगो को अपने में ही लगाने का आग्रह करें तो ये कोई बड़ी बात नही क्यूंकि ऐसा बर्ताव तो दुनिया के स्वार्थी जीवों का होता है । अतः मैं ऐसा स्वभाव सिखाना चाहता हूँ जिससे मनुष्य अपने स्वार्थों का त्याग करके अपनी पूजा प्रतिष्ठा में ही न लगा रहे ,किसी को पराधीन न बनाये।
अब दूसरी शंका ये उठती है कि आप उनकी श्रद्धा को उन देवताओं के प्रति दृढ़ कर देते हैं इससे आपकी साधुता तो सिद्ध हो गई ,पर उन जीवों का तो आपसे विमुख होने पर अहित ही हुआ न ? इसका समाधान ये है कि अगर में उनकी श्रद्धा को दूसरों से हटाकर अपने में लगाने का भावः रखूँगा तो उनकी मेरे में अश्रद्धा हो जायेगी। परन्तु अगर में अपने में लगाने का भावः नही रखूँगा और उन्हें स्वतंत्रता दूंगा तो जो बुद्धिमान होंगे वे मेरे इस बर्ताव को देखकर मेरी ओरे आकृष्ट होंगे। अतः उनके उद्धार का यही तरीका बढ़िया है।
अब तीसरी शंका यह होती है कि जब आप स्वयं उनकी श्रद्धा को दृढ़ कर देते हैं तो फिर कोई उस श्रद्धा को मिटा ही नही सकता। फिर तो उसका पतन होता ही चला जाएगा। इसका समाधान ये है कि मैं उनकी श्रद्दा को देवताओं के प्रति दृढ़ करता हूँ दूसरों के प्रति नही -------ऐसी बात नही है । मैं तो उनकी इच्छा के अनुसार ही उनकी श्रद्धा को दृढ़ करता हूँ और अपनी इच्छा को बदलने में मनुष्य स्वतंत्र है, योग्य है। इच्छा को बदलने में वे परवश ,निर्बल और अयोग्य नही है । अगर इच्छा को बदलने में वे परवश होते तो फिर मनुष्यजन्म की महिमा ही कहाँ रही ? और इच्छा (कामना) का त्याग करने की आज्ञा भी मैं कैसे दे सकता था।

Sunday, March 13, 2011

"अपना उत्तराखण्ड" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


9  नवम्बर सन् 2000 को   
भारत के 27वें राज्य के रूप में 
उत्तराखण्ड राज्य की स्थापना हुई थी! 
uttarakhandmapadministrative1उत्तराखण्ड राज्य का गठन   -   9 नवम्बर, 2000 
कुल क्षेत्रफल                    -   53,483 वर्ग कि.मी.
कुल वन क्षेत्र                   -   35,384 वर्ग कि.मी.
राजधानी                        -   देहरादून (अस्थायी)
सीमाएँ 
अन्तर्राष्ट्रीय                     -   चीन, नेपाल
                        राष्ट्रीय                            -   उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
कुल जिले           -   13
उच्च न्यायालय            -   नैनीताल
प्रति व्यक्ति आय                -   15,187 रुपये
प्रशासनिक इकाई 
मण्डल                                              -   2 (कुमाऊँ और गढ़वाल)
तहसील                         -   78
विकास खण्ड                   -   95
न्याय पंचायत                  -   670
ग्राम पंचायत                       -   7,227
कुल ग्राम                              -   16,826
नगर निगम                 -   1
आबाद ग्राम                         -  15,761
शहरी इकाइयाँ                -   86
नगर पालिकाएँ               -   31
नगर पंचायत                 -   31
छावनी परिषद                -   09
कुल जनसंख्या                -   84,89,349 (सन् 2000 में)
पुरुष                            -   43,35,924
महिलाएँ                        -   41,63,425
लिंग अनुपात                  -   984 : 1000
                                     (महिला : पुरुष)
प्रमुख पर्यटन एवं ऐतिहासिक स्थल- 
नैनीताल, मसूरी, पौड़ी, रानीखेत, चम्पावत, द्यारा, औली, खिर्सू, खतलिंग, वेदिनी बुग्याल, फूलों की घाटी, लैंसडाउन, लाखामण्डल, पाताल भुवनेश्वर, गंगोलीहाट, जौलजीबी, पूर्णागिरि, नानकमत्ता साहिब, चितई गोलू देवता, कटारमल, कौसानी, गागेश्वर धाम, द्वाराहाट, सोमेश्वर, बैजनाथ धाम, पिण्डारी ग्लेशियर, शिखर इत्यादि।
प्रमुख धार्मिक स्थल- 
बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, पंचकेदार, पंचबदरी, पंच प्रयाग, हरिद्वार, ऋषिकेश, हेमकुण्ड साहिब, पूर्णागिरि, चितई गोलू देवता, पिरान कलियर, नानकमत्ता साहिब, रीठा साहिब, बौद्ध स्तूप देहरादून आदि।
प्रमुख लोकगीत एवं लोक नृत्य- 
झुमैलो, थड़्या, चौफला, रासौ, पण्डवानी, तांदी, भड़गीत, जागर, चांचरी, पांडव, झोडा, छोलिया, थारू आदिवासी नृत्य आदि।
मौसम- 
ग्रीष्मकाल- मार्च से जून के मध्य तक, वर्षाकाल- मद्य जून से मध्य सितम्बर तक, शीतकाल- मध्य सितम्बर से फरवरी तक।
राज्य पुष्प- ब्रह्म कमल (SAUSSUREA OBVALLATA)।
राज्य पशु- कस्तूरी मृग (MOSCHUS CHRYSOGASTER)।
राज्य वृक्ष- बुरांश (RHODODENDRONARBOREUM)।
राज्य पक्षी- मोनाल (LOPHOORUS IMPEGANUS)।
आय के प्रमुख स्रोत- 
वन सम्पदा, विद्युत, जल संसाधन, जड़ी बूटी, पर्यटन, तीर्थाटन, खनिज सम्पदा आदि।
प्रमुख खनिज- 
चूना, पत्थर, मैग्नेसाइट, जिप्सम आदि।
प्रमुख फसलें- 
धान, गेहूँ, जौ, मण्डुआ, झंगोरा, मक्का, चौलाई आदि।
प्रमुख फल- 
आम, सेव, लीची, जामुन, नाशपाती, माल्टा आदि।
प्रमुख नदियाँ- 
भागीरथी (गंगा), अलकनन्दा, मन्दाकिनी।
(गंगा, पिण्डारी, टौन्स, यमुना, काली, गोरी, सरयू, नयार, भिलंगना, शारदा आदि।
मुख्यमन्त्री और उनके कार्यकाल-
nityanश्री नित्यानन्द स्वामी- 
9 November 2000 से 29 October 2001 तक।
(भारतीय जनता पार्टी)
bhatsinghkoshyariश्री भगत सिंह कोश्यारी 
30 October 2001 से 1 March 2002 तक।
(भारतीय जनता पार्टी)

14-ndtiwari200श्री पं.नारायण दत्त तिवारी 

2 March 2002 से 7 March 2007 तक।
(भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस)
khanduri-thumbश्री मे.ज. भुवन चन्द्र खण्डूरी 
8 March 2007 से 23 June 2009 तक।
(भारतीय जनता पार्टी)
nishankश्री रमेश पोखरियाल “निशंक” 
24 June 2009 से अब तक।
(भारतीय जनता पार्टी)