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Saturday, November 5, 2011

" भगवान के घर देर है, अन्धेर नहीं!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


DD Mishra, DIG, Fire Services, speaks to journalists about corruption in the purchase of equipment and other material. (PTI Photo by Nand Kumar) UP: cop versus cops

डी.आई.जी. - डी.डी.मिश्र
    भ्रष्टाचार के मुद्दे पर डी.आई.जी. - डी.डी.मिश्र ने अपनी जबान खोली तो सत्ताधीशों ने उनकी मानसिक स्थिति खराब बताकर उन्हें जबरन मानसिक चिकित्सालय में भर्ती करवा दिया।
यह तो पता नहीं कि मानसिकता किसकी खराब है मगर यह जरूर सिद्ध हो गया है कि भ्रष्टाचार पर अपनी साफगोई दिखानेवालों की दुनिया के सबसे बड़े प्रजातन्त्र में खैर नहीं है।
    अन्ना हजारे ने और स्वामी रामदेव ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलन्द की तो शासन के मठाधीशों को यह सहन नहीं हुआ और स्वामी रामदेव के आन्दोलन को कुचल दिया। अन्ना को भी इसका खमियाजा भुगतना पड़ा और उन्हें अकारण जेल में भेज दिया मगर आरोपों में कोई दम नहीं होने के कारण उन्हे न केवल रिहा किया गया बल्कि अनशन करने की भी इजाजत दे दी गई। 
    इसके बाद हरियाणा में उपचुनाव हुए और जनता ने सच्चाई का साथ देते हुए सत्ताधारी दल के प्रत्याशी को धूल चटा दी!
इसके बाद उ.प्र. के एक डी.आई.जी. - डी.डी.मिश्र ने जब मुँह खोला तो उन्हें भी शासन के दमन का शिकार होना पड़ा!
    इतना तो स्पष्ट हो ही गया है कि इस देश में अन्ना हजारे जैसे देशभक्तों का साथ देने पर सरकार के कोप का सामना सबी को करना पड़ेगा! यानि सत्ताधीश इस देश में कभी भी भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं करना चाहते हैं।
   अब देखना यह है कि भ्रष्टाचारी लोग आगामी चुनाव में जनता का विश्वास कैसे जीत पायेंगे?       
     भगवान के घर देर है, अन्धेर नहीं! 
आखिर बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी?

Monday, October 17, 2011

"दिन का प्रारम्भ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

दिन का प्रारम्भ सूर्योदय से न होकर रात्रि 12 बजे से क्यों होता है?
इसका उत्तर मेरे विचार से यह है कि-
सूर्योदय का कोई सार्वभौमिक समय निश्चित नहीं है।
हमारे देश में कभी सूर्योदय पाँच बजे, कभी 6 बजे और कभी 7 बजे भी होता है। इसके अतिरिक्त दुनिया के सभी देशों में सूर्योदय का समय अलग-अलग होता है। इसलिए अगले दिन की गणना सूर्योदय से करना सम्भव नहीं है। लेकिन सारी दुनिया में मध्यरात्रि का समय 12 बजे निश्चित है। अतः दिन का आरम्भ मध्यरात्रि 12 बजे के बाद से ही माना जाता है।

Friday, September 16, 2011

"रूप इतना खूबसूरत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

रूप इतना खूबसूरत
आइने की क्या जरूरत

आ रहीं नज़दीक घड़ियाँ
जब बनेगा शुभमुहूरत

बैठकर जब बात होंगी
दूर होंगी सब कुदूरत


लाख पर्दों में छुपाओ
छिप नहीं पायेगी सूरत

दिल में हमने है समायी
आपकी सुन्दर सी सूरत

आज मेरे चाँद का है
"रूप" कितना खूबसूरत

Wednesday, August 17, 2011

Anna Hajare is Anna Karore now

कल 16 अगस्त 2011 को अन्ना हजारे द्वारा जे पी पार्क में जो धरना व अनशन करना प्रस्तावित था। उससे पूर्व ही उन्हें गिरफ्तार करके दिल्ली पुलिस ने सत्ता के साथ अपने रिश्तो की मजबूती दर्शाई । फिर दिन भर आरोप प्रत्यारोप लगते रहे और अन्ना के पक्ष मंे बढते जनाधार व सत्ता के प्रति बढते जनाक्रोश के चलते सरकार ने आखिर में उनकी रिहाई का मन बना लिया। उसे देखकर लगता है कि सत्ता आज संविधान से भी अधिक महत्वपूर्ण हो गई हैं।
आखिर श्री राहुल गांधी को क्या हक हैं कि वह किसी की रिहाई या बंदी बनाने के फैसले की प्रकिया में शामिल हो सकें।
फिर देखें कि कितना जनबल अन्ना के साथ आ गया। कि इन्हें अन्ना हजारे नही अन्ना करोडे कहा जाना चाहिए।
आप सभी पाठकों से मेरा अनुरोध हैं कि अपने स्थानीय सांसद, प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति के नाम अन्ना के लोकपाल बिल के संबंध में एक एक पोस्टकार्ड जरूर भेजें। एवं कम से कम 10 लोगों को पोस्टकार्ड भेजने हेतु प्रेरित करें
पोस्टकार्ड में लिखे जाने वाले ज्ञापन का मैटर निम्न रखा जा सकता हैं।
सांसद को लिखा जाने वाला पत्र
हमने आपको अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए संसद में भेजा हैं। न कि उसे बढाने के लिए। शायद ये हमारी गलती हो गई।कृप्या कर हमने आपको चुनकर जो गलती कर दी उसकी और सजा हमें ना देवें। अरे इससे अच्छी तो गुलामी थी कम से कम हमें परेशान करने वाले पराये तो थे, अब तो अपने ही हमें घाव देने लगे हैं। ये काहे की आजादी हैं। ये तो सत्ता का हस्तांतरण हैं। इसमें ज्यादा तकलीफ है क्योंकि आप हमारे हैं और आप ही हमें परेशान करें। लोकपाल बिल पारित करावें।

भवदीयः
आपके व आपकी सरकार के जुल्मों की सताई, आजादी के बाद भी आपकी गुलाम, आपकी जनता


प्रधानमंत्री को लिखा जाने वाला पत्र
हमने आपको अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए जिन्हें संसद में भेजा था शायद ये हमसे उन्हें चुनने में गलती हो गई। क्यांेकि उन्होने आपको अपना नेता चुन लिया। और इस कारण से देष का बेडा गर्क हो गया हैं। कृप्या कर हमने आपको चुनकर जो गलती कर दी उसकी और सजा हमें ना देवें। अरे इससे अच्छी तो गुलामी थी कम से कम हमें परेषान करने वाले पराये तो थे, अब तो अपने ही हमें घाव देने लगे हैं। ये काहे की आजादी हैं। ये तो सत्ता का हस्तांतरण हैं। इसमें ज्यादा तकलीफ है क्योंकि आप हमारे हैं और आप ही हमें परेशान करें। लोकपाल बिल पारित करावें। अरे सिंह साहब शर्म करो, ऐसी भी क्या मजबूरी।

भवदीयः
आपके व आपकी सरकार के जुल्मों की सताई, आजादी के बाद भी आपकी गुलाम, आपकी जनता


राष्ट्रपति को लिखा जाने वाला पत्र
आप भारत के संविधान द्वारा निर्मित सर्वोच्च पद पर आसीन हैं। हम जानते हैं कि आपका पद केवल मात्र एक रबर की मोहर के समान हैं। आपके हाथ में कुछ नही हैं। मगर आपको जो विषेषाधिकार प्राप्त हैं, उनका प्रयोग करें और इस जनता को परेषान करने वाली सरकार को सुधारें। आपसे हमें यही उम्मीद हैं। क्या आप हमारी समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रयास करके हमारी उम्मीदों पर खरी उतरेंगी या अपने पूर्व परिवार (अपनी राजनैतिक पार्टी) एवं पूर्व मित्रों (नेतागणों) के साथ रहकर अपना फर्ज अदा करेंगी। और देष को बर्बाद होते देखना पसंद करेंगी। कृप्या कर आपको चुनकर जो गलती कर दी उसकी और सजा हमें ना देवें। लोकपाल बिल पारित करावें अरे इससे अच्छी तो गुलामी थी कम से कम हमें परेषान करने वाले पराये तो थे, अब तो अपने ही हमें घाव देने लगे हैं। ये काहे की आजादी हैं। ये तो सत्ता का हस्तांतरण हैं। इसमें ज्यादा तकलीफ है क्योंकि आप हमारे हैं और आप ही हमें परेशान करें।
भवदीयः
आपके व आपकी सरकार के जुल्मों की सताई, आजादी के बाद भी आपकी गुलाम, आपकी जनता

Sunday, August 7, 2011

"अन्तरराष्ट्रीय मित्रता दिवस आज ही है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")



The first World Friendship Day 

was proposed for 30 July 1958.

On 27 April 2011

the General Assembly 

of the United Nations declared[3]

30 July as official International Friendship Day.

However, some countries, including India[4], 

celebrate Friendship Day on the first Sunday of August.

इस हिसाब से तो आज ही मित्रता दिवस है।

मित्रता दिवस पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

अगले वर्ष अगस्त के प्रथम सप्ताह में

आपको फिर से बधाई दूँगा।




Thursday, June 23, 2011

"मोहब्बत " हो गयी

तुझे देखा
नहीं हुई
तुझे पाया 
नहीं हुई
तुझे चाहा
नहीं हुई
मगर 
जिस दिन
तुझे जाना
"मोहब्बत "
हो गयी

Monday, June 13, 2011

नैनन पड़ गए फीके

सखी री मेरे
 नैनन पड़ गए फीके
रो-रो धार अँसुवन की 
छोड़ गयी कितनी लकीरें
आस सूख गयी 
प्यास सूख गयी
सावन -भादों बीते सूखे 
सखी री मेरे
नैनन पड़ गए फीके
बिन अँसुवन  के 
अँखियाँ बरसतीं 
बिन धागे के 
माला जपती 
हो गए हाल  
बिरहा  के 
सखी री मेरे
नैनन पड़ गए फीके  
श्याम बिना फिरूं 
 हो के दीवानी
लोग कहें मुझे 
मीरा बावरी 
कैसे कटें 
दिन बिरहन के
सखी री मेरे
नैनन पड़ गए फीके
हार श्याम को
सिंगार श्याम को
राग श्याम को
गीत श्याम को
कर गए
जिय को रीते 
सखी री मेरे
नैनन पड़ गए फीके 

Saturday, June 11, 2011

"बात समझ में आ गई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


विषय इतना जटिल है कि सोच रहा हूँ कि इसकी शरूआत कहाँ से करूँ।

पहाड़ मेरा घर है और इसके ठीक नीचे बसा हुआ मैदान मेरा आँगन है।
जिन दिनों सरदी कुछ ज्यादा बढ़ जाती है। नेपाल के पहाड़ी क्षेत्र से बहुत सारे बच्चे इन मैदानी भागों में नौकरी करने के लिए आ जाते हैं। ये अक्सर घरों या होटलों में साफ-सफाई करते या झूठे बरतन बलते हुए देखे जा सकते हैं। इनकी उम्र 10 साल से 12 साल के बीच होती है। बड़े होने पर ये दिल्ली या बम्बई जैसे महानगरों में पलायन कर जाते हैं।
क्या कारण है कि इन बालकों को घर से बिल्कुल भी मोह नही होता है? जबकि हमारे घरों के बालक माता-पिता से इतना मोह रखते हैं कि विवाह होने तक माता-पिता और घर को छोड़ने की कल्पना भी नही कर सकते।
मैंने जब गहराई से इस पर विचार किया तो बात समझ में आ गई।
मैं नेपाल देश के बिल्कुल करीब में रहता हूँ।

जहाँ माताएँ अपने एक महीने के बालक को भी पीठ से बाँध कर चलती हैं। जबकि हमारे घरों की माताएँ अपने दो वर्ष के बच्चे को भी अपनी छाती के साथ लगा कर रखती है। यदि कहीं जायेगी तो वो बच्चे को सीने से लगा कर ही चलेंगी।
बस यही तो अन्तर होता है, छाती से लगा कर पले बालकों और पीठ के पले बालकों में।
छाती से लगा कर पले बालक हृदय के करीब होते हैं और पीठ के पले बालक हृदय के दूर होते हैं।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)

Saturday, April 23, 2011

"सीनियर सिटीजन बलफेयर सोसायटी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


सीनियर सिटीजन वैलफेयर सोसायटी (पंजीकृत संख्या-21/2010-11)

खटीमा, जिला-ऊधमसिंहनगर।
(सत्र 2011-12 के लिए नवीन चुनाव की अधिसूचना)
मान्यवर,
     सीनियर सिटीजन वैलफेयर सोसायटी, खटीमा की प्रबन्धकारिणी समिति का कार्यकाल दिनांक 20 अप्रैल, 2011 को समाप्त हो गया है।
इस अवधि में संस्थाध्यक्ष द्वारा संस्था के चुनान न कराये जाने के कारण पंजीकृत संविधान के अनुपालन में मैं संस्था की कार्यकारिणी को भंग करता हूँ तथा संस्था का संचालन अपने हाथ में लेकर नवीन चुनाव की तिथि 19-05-2011 की घोषणा करता हूँ।
1-        दिनांक 19-05-2011 बृहस्पतिवार को अपराह्न 3 बजे से नवीन तहसील भवन, खटीमा (ऊधमसिंहनगर) के सभाकक्ष में संस्था के चुनाव की कार्यवाही की जाएगी। इस अवसर पर समस्त सदस्य उपस्थित होकर अपना मतदान करने की कृपा करें।
2-        उपजिलाधिकारी/तहसीलदार, खटीमा से निवेदन है कि दिनांक 20-04-2011 से  19-05-2011 तक तहसील का सभाकक्ष संस्था की किसी भी वैठक के देने की स्वीकृति न प्रदान करें।
3-        शाखा प्रबन्धक, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, खटीमा को सूचित किया जाता है कि वह नवीन चुनाव के पश्चात अधोहस्ताक्षरी द्वारा आगामी सत्र के लिए नये पदाधिकारियों के नाम न दिये जाने तक संस्था के धन आहरण पर रोक लगाने की कृपा करें।
4-        निवर्तमान कोषाध्यक्ष से अनुरोध है कि संस्था से सम्बन्धित समस्त आय-व्यय के अभिलेख (रसीद-बुक/बिल-वाउचर तथा कैशबुक) अधोहस्ताक्षरी के यह पत्र मिलने के 7 दिनों के भीतर जमा करने कर दें। जिससे कि आय-व्यय की वार्षिक रिपोर्ट अधोहस्ताक्षरी द्वारा बनाई जा सके।
दिनांक- 20-04-2011
सूचनार्थँ-
उप निबन्धक- फर्म्स सोसायटीज एवं चिट्स,
ऊधमसिंहनगर।
निवेदक

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री)
सचिव
सीनियर सिटीजन बैलफेयर सोसायटी, खटीमा (ऊधमसिंहनगर)

Monday, April 18, 2011

हनुमान जयंती विशेष

गर रामभक्त बनकर ना आया होता
राम का नाम ना किसी ने गाया होता
सीता का पता ना लगाया होता
तो रावण पर विजय ना पाई होती
सीना फ़ाड ना दिखाया होता
तो राम महिमा ना किसी ने जानी होती

आज हनुमान जयंती पर
कष्ट निवारक दुखहर्ता
सह्रदयी राम भक्त
हनुमान को
कोटि कोटि नमन है

Wednesday, April 6, 2011

ब्लॉगर मीट में जिसका नाम है FIND RAJASTHAN

आप सभी आमंत्रित हैं
रानी जिला पाली राजस्थान मैं दिनांक 1 व 2 मई को आयोजित होने वाले ब्लॉगर मीट में जिसका नाम है FIND RAJASTHAN

इसमें प्रथम दिवस में आने के बाद आराम विश्राम के पश्चात परिचय सत्र का आयोजन किया जायेगा, इसके पश्चात रात्रि के समय एक गोष्ठी होगी जिसमे कुछ ज्वलंत मुद्दों पर आप सभी ब्लागरों से चर्चा की जायेगी


दुसरे दिन नजदीकी भ्रमण स्थान रणकपुर जैन मंदिर जो की विश्व प्रशिद्ध है का भ्रमण किया जायेगा .
नजदीकी रेलवे स्टेशन रानी और फालना है जयपुर दिल्ली और मुंबई तक से सीधी ट्रेन सुविधा है साथ ही बिहार और उत्तर प्रदेश से भी कई ट्रेने चलती है
आप केवल अपना स्थान बता दीजिये पूर्ण ट्रेन की समय सारणी भिजवा दी जाएगी


कृपया कर आने वाले ब्लॉगर अपना नाम दिनांक 25 अप्रेल तक दे देवें ताकि कार्यक्रम की रुपरेखा प्रकाशित हो सके
संपर्क करें bloggermeet@naradnetwork.in
tarun@naradnetwork.in
Mobile No. 9251610562

JAI HIND

Saturday, March 19, 2011

"उस होली की याद अभी भी ताजा है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

उस होली की याद अभी भी ताजा है!

लगभग 37 साल पुरानी बात है। उस समय मेरी नई-नई शादी हुई थी! पहली होली ससुराल में मनानी थी। इसलिए मैं और मेरी श्रीमती जी होली के एक दिन पहले ही रुड़की पहुँच गए थे।

उस समय मेरी इकलौती साली का विवाह नहीं हुआ था। उसे भी जीजाजी के साथ होली खेलने की बहुत उमंग चढ़ी थी। रात में खाना खाकर सभी लोग एक बड़े कमरे में इकट्ठे हो गये। उस कमरे में छत पर लगे बिजली के पंखे के साथ तीन गुब्बारे लटके हुए थे।

सभी लोग ढोल-मंजीरे के साथ गाना गाने में और हँसी ठिठोली में मशगूल थे।तभी मेरी सलहज साहिबा ने मुझे डांस करने के लिए राजी कर लिया और नाच-गाना होने लगा। मेरी साली तो न जाने कब से इस मौके की फिराक में थी।

जैसे ही मैं पंखे से लटके गुब्बारों के नीचे आया साली ने सेफ्टीपिन से इन गुब्बारों को फोड़ दिया और बहुत गाढ़े लाल-हरे और बैंगनी रंग से मैं सराबोर हो गया।

आज भी वो होली मुझे भुलाए नहीं भूलती!

Tuesday, March 15, 2011

"श्रीमद्भागवद्गीता से ..............."

श्रीमद्भागवद्गीता के सातवें अध्याय के २१ वें श्लोक में भगवान प्रत्येक देवता के प्रति श्रद्धा का बखान कर रहे हैं। स्वामी रामसुखदास जी ने इसकी बहुत ही सुंदर व्याख्या की है ।
श्लोक

जो- भक्त जिस -जिस देवता का श्रद्धा पूर्वक पूजन करना चाहता है ,उस- उस देवता के प्रति मैं उसकी श्रद्धा को दृढ़ कर देता हूँ ।

व्याख्या

भगवान कहते हैं ------जो- जो मनुष्य जिस- जिस देवता का भक्त होकर श्रद्धा पूर्वक भजन -पूजन करना चाहता है उस -उस मनुष्य की श्रद्धा उस -उस देवता के प्रति में अचल कर देता हूँ । वे दूसरों में न लगकर मेरे में ही लग जायें -------ऐसा मैं नही करता। यद्यपि उन देवताओं में लगने से कामना के कारण उनका कल्याण नही होता ,फिर भी मैं उनको उनमें लगा देता हूँ तो जो मेरे में श्रद्धा - प्रेम रखते हैं ,अपना कल्याण करना चाहते हैं ,उनकी श्रद्धा को मैं अपने प्रति कैसे दृढ़ नही करूंगा अर्थात अवश्य करूंगा, कारण कि मैं प्राणिमात्र का सुहृद हूँ ।
इस पर शंका होती है कि आप सबकी श्रद्धा अपने में ही क्यूँ नही दृढ़ करते?इस पर भगवान मानो ये कहते हैं कि अगर में सबकी श्रद्धा को अपने प्रति दृढ़ करूँ तो मनुष्यजन्म कि स्वतंत्रता और सार्थकता कहाँ रही ?तथा मेरी स्वार्थपरता का त्याग कहाँ हुआ? अगर लोगो को अपने में ही लगाने का आग्रह करें तो ये कोई बड़ी बात नही क्यूंकि ऐसा बर्ताव तो दुनिया के स्वार्थी जीवों का होता है । अतः मैं ऐसा स्वभाव सिखाना चाहता हूँ जिससे मनुष्य अपने स्वार्थों का त्याग करके अपनी पूजा प्रतिष्ठा में ही न लगा रहे ,किसी को पराधीन न बनाये।
अब दूसरी शंका ये उठती है कि आप उनकी श्रद्धा को उन देवताओं के प्रति दृढ़ कर देते हैं इससे आपकी साधुता तो सिद्ध हो गई ,पर उन जीवों का तो आपसे विमुख होने पर अहित ही हुआ न ? इसका समाधान ये है कि अगर में उनकी श्रद्धा को दूसरों से हटाकर अपने में लगाने का भावः रखूँगा तो उनकी मेरे में अश्रद्धा हो जायेगी। परन्तु अगर में अपने में लगाने का भावः नही रखूँगा और उन्हें स्वतंत्रता दूंगा तो जो बुद्धिमान होंगे वे मेरे इस बर्ताव को देखकर मेरी ओरे आकृष्ट होंगे। अतः उनके उद्धार का यही तरीका बढ़िया है।
अब तीसरी शंका यह होती है कि जब आप स्वयं उनकी श्रद्धा को दृढ़ कर देते हैं तो फिर कोई उस श्रद्धा को मिटा ही नही सकता। फिर तो उसका पतन होता ही चला जाएगा। इसका समाधान ये है कि मैं उनकी श्रद्दा को देवताओं के प्रति दृढ़ करता हूँ दूसरों के प्रति नही -------ऐसी बात नही है । मैं तो उनकी इच्छा के अनुसार ही उनकी श्रद्धा को दृढ़ करता हूँ और अपनी इच्छा को बदलने में मनुष्य स्वतंत्र है, योग्य है। इच्छा को बदलने में वे परवश ,निर्बल और अयोग्य नही है । अगर इच्छा को बदलने में वे परवश होते तो फिर मनुष्यजन्म की महिमा ही कहाँ रही ? और इच्छा (कामना) का त्याग करने की आज्ञा भी मैं कैसे दे सकता था।

Sunday, March 13, 2011

"अपना उत्तराखण्ड" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


9  नवम्बर सन् 2000 को   
भारत के 27वें राज्य के रूप में 
उत्तराखण्ड राज्य की स्थापना हुई थी! 
uttarakhandmapadministrative1उत्तराखण्ड राज्य का गठन   -   9 नवम्बर, 2000 
कुल क्षेत्रफल                    -   53,483 वर्ग कि.मी.
कुल वन क्षेत्र                   -   35,384 वर्ग कि.मी.
राजधानी                        -   देहरादून (अस्थायी)
सीमाएँ 
अन्तर्राष्ट्रीय                     -   चीन, नेपाल
                        राष्ट्रीय                            -   उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
कुल जिले           -   13
उच्च न्यायालय            -   नैनीताल
प्रति व्यक्ति आय                -   15,187 रुपये
प्रशासनिक इकाई 
मण्डल                                              -   2 (कुमाऊँ और गढ़वाल)
तहसील                         -   78
विकास खण्ड                   -   95
न्याय पंचायत                  -   670
ग्राम पंचायत                       -   7,227
कुल ग्राम                              -   16,826
नगर निगम                 -   1
आबाद ग्राम                         -  15,761
शहरी इकाइयाँ                -   86
नगर पालिकाएँ               -   31
नगर पंचायत                 -   31
छावनी परिषद                -   09
कुल जनसंख्या                -   84,89,349 (सन् 2000 में)
पुरुष                            -   43,35,924
महिलाएँ                        -   41,63,425
लिंग अनुपात                  -   984 : 1000
                                     (महिला : पुरुष)
प्रमुख पर्यटन एवं ऐतिहासिक स्थल- 
नैनीताल, मसूरी, पौड़ी, रानीखेत, चम्पावत, द्यारा, औली, खिर्सू, खतलिंग, वेदिनी बुग्याल, फूलों की घाटी, लैंसडाउन, लाखामण्डल, पाताल भुवनेश्वर, गंगोलीहाट, जौलजीबी, पूर्णागिरि, नानकमत्ता साहिब, चितई गोलू देवता, कटारमल, कौसानी, गागेश्वर धाम, द्वाराहाट, सोमेश्वर, बैजनाथ धाम, पिण्डारी ग्लेशियर, शिखर इत्यादि।
प्रमुख धार्मिक स्थल- 
बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, पंचकेदार, पंचबदरी, पंच प्रयाग, हरिद्वार, ऋषिकेश, हेमकुण्ड साहिब, पूर्णागिरि, चितई गोलू देवता, पिरान कलियर, नानकमत्ता साहिब, रीठा साहिब, बौद्ध स्तूप देहरादून आदि।
प्रमुख लोकगीत एवं लोक नृत्य- 
झुमैलो, थड़्या, चौफला, रासौ, पण्डवानी, तांदी, भड़गीत, जागर, चांचरी, पांडव, झोडा, छोलिया, थारू आदिवासी नृत्य आदि।
मौसम- 
ग्रीष्मकाल- मार्च से जून के मध्य तक, वर्षाकाल- मद्य जून से मध्य सितम्बर तक, शीतकाल- मध्य सितम्बर से फरवरी तक।
राज्य पुष्प- ब्रह्म कमल (SAUSSUREA OBVALLATA)।
राज्य पशु- कस्तूरी मृग (MOSCHUS CHRYSOGASTER)।
राज्य वृक्ष- बुरांश (RHODODENDRONARBOREUM)।
राज्य पक्षी- मोनाल (LOPHOORUS IMPEGANUS)।
आय के प्रमुख स्रोत- 
वन सम्पदा, विद्युत, जल संसाधन, जड़ी बूटी, पर्यटन, तीर्थाटन, खनिज सम्पदा आदि।
प्रमुख खनिज- 
चूना, पत्थर, मैग्नेसाइट, जिप्सम आदि।
प्रमुख फसलें- 
धान, गेहूँ, जौ, मण्डुआ, झंगोरा, मक्का, चौलाई आदि।
प्रमुख फल- 
आम, सेव, लीची, जामुन, नाशपाती, माल्टा आदि।
प्रमुख नदियाँ- 
भागीरथी (गंगा), अलकनन्दा, मन्दाकिनी।
(गंगा, पिण्डारी, टौन्स, यमुना, काली, गोरी, सरयू, नयार, भिलंगना, शारदा आदि।
मुख्यमन्त्री और उनके कार्यकाल-
nityanश्री नित्यानन्द स्वामी- 
9 November 2000 से 29 October 2001 तक।
(भारतीय जनता पार्टी)
bhatsinghkoshyariश्री भगत सिंह कोश्यारी 
30 October 2001 से 1 March 2002 तक।
(भारतीय जनता पार्टी)

14-ndtiwari200श्री पं.नारायण दत्त तिवारी 

2 March 2002 से 7 March 2007 तक।
(भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस)
khanduri-thumbश्री मे.ज. भुवन चन्द्र खण्डूरी 
8 March 2007 से 23 June 2009 तक।
(भारतीय जनता पार्टी)
nishankश्री रमेश पोखरियाल “निशंक” 
24 June 2009 से अब तक।
(भारतीय जनता पार्टी)

Friday, February 25, 2011

"श्रीमद भगवद्गीता से ..............."

देवभूमि ..........जैसा नाम वैसी ही पोस्ट भी होनी चाहिए कम से कम पहली पोस्ट तो ऐसी ही होनी चाहिए ..........इसलिए देवभूमि को नमन करते हुए पहली पोस्ट लगा रही हूँ.

श्रीमद भगवद्गीता के सातवें अध्याय का ४० वां श्लोक आज के सन्दर्भ में कितना सटीक है । आज इसका थोड़ा सा वर्णन लिख रही हूँ जो स्वामी रामसुखदास जी ने किया है ।


श्लोक
 
श्री भगवन बोले -----हे पृथानन्दन !उसका ने तो इस लोक में और न परलोक में ही विनाश होता है क्यूंकि हे प्यारे ! कल्याणकारी काम करने वाला कोई भी मनुष्य दुर्गति को नही जाता ।
व्याख्या
 
जिसको अन्तकाल में परमात्मा का स्मरण नही होता उसका कहीं पतन तो नही हो जाता ----इस बात को लेकर अर्जुन के ह्रदय में व्याकुलता है । यह व्याकुलता भगवान से छिपी नही है ,इसलिए भगवान पहले इसी प्रश्न का उत्तर देते हैं।

भगवान कहते हैं -----हे प्रथानंदन जो साधक अन्तसमय में किसी कारणवश योग से ,साधन से विचलित हो जाता है वह योगभ्रष्ट साधक मरने के बाद चाहे इस लोक में जनम ले या परलोक में जनम ले उसका पतन नही होता। तात्पर्य है कि उसकी योग में जितनी स्थिति बन चुकी है उससे नीचे नही गिर सकता। उसकी साधन सामग्री नष्ट नही होती। जैसे भरत मुनि जो भारतवर्ष का राज छोड़कर एकांत में तप करने चले गए थे मगर दयापरवश होकर एक हिरन के बच्चे में आसक्त हो गए जिससे दूसरे जनम में उन्हें हिरन बनना पड़ा परन्तु जितना त्याग,तप साधना उन्होंने पिछले जनम में की थी वह नष्ट नही हुयी ,उनको हिरन के जनम में भी वो सब याद था जो मनुष्य जनम में भी याद नही रहता अर्थात हिरन के जनम में भी उनका पतन नही हुआ। इसी तरह पहले जनम में मनुष्य जिनका स्वभाव सेवा करने का होता है वे किसी कारणवश योगभ्रष्ट हो भी जायें तो भी उनका वह स्वभाव नष्ट नही होता फिर चाहे वो अगले जनम में पशु पक्षी ही क्यूँ न बन जायें, परोपकार की भावना उनमें उसी तरह बनी रहती है। ऐसे बहुत से उदहारण आते हैं। एक जगह कथा होती थी तो एक कला कुत्ता वहां आकर बैठता था और कथा सुनता था । जब कीर्तन करते हुए कीर्तन मण्डली घूमती तो उस मंडली के साथ वह कुत्ता भी घूमता था।

भगवान कहते हैं कि जो मनुष्य कल्याणकारी कामों में लगा रहता है उसका कभी पतन नही होता क्यूंकि उसकी रक्षा मैं करता रहता हूँ फिर उसकी दुर्गति कैसे हो सकती है। जो मनुष्य मेरी तरफ़ चलता है वह मुझे बहुत ही प्यारा लगता है क्यूंकि वास्तव में वो मेरा ही अंश है संसार का नही उसका वास्तविक सम्बन्ध मेरे साथ है संसार के साथ नही । उसने मेरे साथ इस वास्तविक सम्बन्ध को पहचान लिया फिर उसकी दुर्गति कैसे हो सकती है ?उसका साधन कैसे नष्ट हो सकता है ? हाँ कभी कभी उसका साधा छूटा हुआ सा दीखता है तो ये स्थिति उसके अभिमान के कारण आती है और मैं उसीचेतना के लिए उसके सामने ऐसी घटना घटा देता हूँ जिससे व्याकुल होकर वह फिर मेरी तरफ़ चलने लगता है। जैसे गोपियों का अभिमान देखकर रास से ही अंतर्धान हो गया मैं तो सब गोपियाँ घबरा गयीं। जब वे विशेष व्याकुल हो गई तब मैं उन गोपियों के समुदाय के बीच में ही प्रगट हो गया और उनके पूछने पर कहा ---------तुम लोगो का भजन करता हुआ ही मैं अंतर्धान हुआ था तुम लोगो की याद और तुम लोगों का हित मेरे से छूटा नही है । इसका तात्पर्य ये है की अनंत जन्मों से भूला हुआ ये प्राणी जब केवल मेरी तरफ़ लगता है तब वह मेरे को प्यारा लगता है क्यूंकि उसने अनेक योनियों में बहुत दुःख पाए हैं और अब वह सन्मार्ग पर आ गया है। उसी तरह उसके हितों की रक्षा करता हूँ जैसे एक माँ अपने बच्चे की करती है।

तात्पर्य ये है कि जिसके भीतर एक बार साधन के संस्कार पड़ गए हैं वे संस्कार कभी नष्ट नही होते कारण कि उसी परमात्मा के लिए जो काम किया जाता है वह सत हो जाता है अर्थात उसका कभी अभाव नही होता। कल्याणकारी काम करने वाले किसी व्यक्ति की दुर्गति नही होती उसके जितने सद्भाव होते हैं ,जैसा स्वभाव होता है वह प्राणी किसी कारण वशात किसी नीच योनी में भी चला जाए तो भी उसके सद्भाव उसका कल्याण करना नही छोडेंगे ।

अब प्रश्न उठता है कि अजामिल जैसा शुद्ध ब्रह्मण भी वेश्यागामी हो गया,विल्वमंगल भी चिंतामणि नाम की वेश्या के वश में हो गए तो इनका इस जीवित अवस्था में ही पतन कैसे हो गया?इसका समाधान ये है कि उन लोगों का पतन हो गया ऐसा दीखता है मगर वास्तव में उनका पतन नही उद्धार ही हुआ है। अजामिल को लेने भगवान के पार्षद आए और विल्वमंगल भगवान के भक्त बन गए। इस प्रका रवो पहले भी सदाचारी थे और बाद में भी उद्धार हो गया सिर्फ़ बीच में उनकी दशा अच्छी नही थी। तात्पर्य ये हुआ की किसी विघ्न बाधा से, किसी असावधानी से उसके भावः और आचरण गिर सकते हैं ,परन्तु पहले का किया हुआ साधन कभी नष्ट नही होता ,उसकी वो पूँजी वैसी की वैसी ही रहती है और जब अच्छा संग मिलता है तब वो भावः तेजी से उदय होने लगते हैं और वो तेजी से भगवन की ओर चलने लगता है। इससे यही शिक्षा मिलती है कि हमें हर समय सावधान रहना चाहिए जिससे हम किसी कुसंगत में न पड़ जायें और अपना साधन न छोड़ दें।

Thursday, February 24, 2011

"देवभूमि चिट्ठाकार समिति" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


मित्रों!
आज देश-विदेश में  ब्लॉगिंग से जुड़े हुए लोगों ने संगठननुमा बहुत से ब्लॉग बना लिए है। मैंने भी हिन्दी चिट्ठाकारों को सामूहिकरूप से अपनी बात कहने के लिए एक मंच देने का प्रयास किया है। 
देवभूमि चिट्ठाकार समिति में जो भी सुधि ब्लॉगर अपना योगदान देंगें वही इस ब्लॉग के स्वामी होंगें।
मेरा सभी साथियों से निवेदन है कि इस हेतु आगे आयें और लेखक के रूप में जुड़ने के लिए अपना नाम टिप्पणी में देने की कृपा करें।
 जय भारत!                            जय उत्तराखण्ड!