उस होली की याद अभी भी ताजा है!
लगभग 37 साल पुरानी बात है। उस समय मेरी नई-नई शादी हुई थी! पहली होली ससुराल में मनानी थी। इसलिए मैं और मेरी श्रीमती जी होली के एक दिन पहले ही रुड़की पहुँच गए थे।
उस समय मेरी इकलौती साली का विवाह नहीं हुआ था। उसे भी जीजाजी के साथ होली खेलने की बहुत उमंग चढ़ी थी। रात में खाना खाकर सभी लोग एक बड़े कमरे में इकट्ठे हो गये। उस कमरे में छत पर लगे बिजली के पंखे के साथ तीन गुब्बारे लटके हुए थे।
सभी लोग ढोल-मंजीरे के साथ गाना गाने में और हँसी ठिठोली में मशगूल थे।तभी मेरी सलहज साहिबा ने मुझे डांस करने के लिए राजी कर लिया और नाच-गाना होने लगा। मेरी साली तो न जाने कब से इस मौके की फिराक में थी।
जैसे ही मैं पंखे से लटके गुब्बारों के नीचे आया साली ने सेफ्टीपिन से इन गुब्बारों को फोड़ दिया और बहुत गाढ़े लाल-हरे और बैंगनी रंग से मैं सराबोर हो गया।
आज भी वो होली मुझे भुलाए नहीं भूलती!
बहुत ही रोचक संस्मरण.....ह्रदय आनंदित हो गया...धन्यवाद।आपको और आपके पूरे परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संस्मरण |
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ|
बहुत ही रोचक संस्मरण है…………आपको और आपके पूरे परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteमेरी लड़ाई Corruption के खिलाफ है आपके साथ के बिना अधूरी है आप सभी मेरे ब्लॉग को follow करके और follow कराके मेरी मिम्मत बढ़ाये, और मेरा साथ दे ..
ReplyDeleteये यादे ही तो असल निधि हैं... मन मुस्कुरा उठता है जब ऐसी बाते सुनते है जब
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