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Monday, June 13, 2011

नैनन पड़ गए फीके

सखी री मेरे
 नैनन पड़ गए फीके
रो-रो धार अँसुवन की 
छोड़ गयी कितनी लकीरें
आस सूख गयी 
प्यास सूख गयी
सावन -भादों बीते सूखे 
सखी री मेरे
नैनन पड़ गए फीके
बिन अँसुवन  के 
अँखियाँ बरसतीं 
बिन धागे के 
माला जपती 
हो गए हाल  
बिरहा  के 
सखी री मेरे
नैनन पड़ गए फीके  
श्याम बिना फिरूं 
 हो के दीवानी
लोग कहें मुझे 
मीरा बावरी 
कैसे कटें 
दिन बिरहन के
सखी री मेरे
नैनन पड़ गए फीके
हार श्याम को
सिंगार श्याम को
राग श्याम को
गीत श्याम को
कर गए
जिय को रीते 
सखी री मेरे
नैनन पड़ गए फीके 

8 comments:

  1. वाह!
    बहुत सुन्दर रचना लगाई है आपने!

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  2. इतने आंसू बहे कि आखें फीकी पडगई व आंसुओं की लकीर कपोलों पर स्थिर हो गई। बिना आंसू के आखों का बरसना और बिना धागा के माला जपना अच्छा प्रयोग ं। हर चीज सिर्फ और सिर्फ श्यामसुन्दर के लिये । भक्तिरस से ओतप्रोत शास्त्री जी की रचना आपने पेश की । आपको बहुत बहुत धन्यवाद

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  3. भक्ति रस में डूबी हुई बहुत सुन्दर प्रस्तुति..आभार

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  4. बहुत सुन्दर रचना| आभार|

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  5. वाह पढ़कर बहुत अच्छा लगा. सुन्दर कविता आभार

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  6. आपका यह चिट्ठा आज ही देखा, कभी मैंने भी कल्पना की थी उत्तराखण्डी चिट्ठाकारों की सामूहिक गतिविधियों की पर समय हम लोग गिनकर कोई तीन ही थे।

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  7. @ BrijmohanShrivastava ji
    ये रचना मैने लिखी है और ये ब्लोग शास्त्री जी ने साझा बनाया है इसलिये मैने इसे यहाँ पोस्ट की है।

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  8. @ BrijmohanShrivastava ji
    आदरणीया वन्दना गुप्ता जी इस ब्लॉग की सम्मानित लेखिका हैं!
    यह रचना उन्हीं की है!
    मैं तो अक्सर छन्दबद्ध तुकान्त रचनाएँ ही लिखता हूँ!

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