अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से
एक गीत
"काँटों की पहरेदारी"
आशा और निराशा के क्षण,
पग-पग पर मिलते हैं।
काँटों की पहरेदारी में,
ही गुलाब खिलते हैं।
पतझड़ और बसन्त कभी,
हरियाली आती है।
सर्दी-गर्मी सहने का,
सन्देश सिखाती है।
यश और अपयश साथ-साथ,
दायें-बाये चलते हैं।
काँटो की पहरेदारी में,
ही गुलाब खिलते हैं।
जीवन कभी कठोर कठिन,
और कभी सरल सा है।
भोजन अमृततुल्य कभी,
तो कभी गरल सा है।
सागर के खारे जल में,
ही मोती पलते हैं।
काँटो की पहरेदारी में,
ही गुलाब खिलते हैं।
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Monday, May 12, 2014
"काँटों की पहरेदारी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर शास्त्रीजी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. इस कविता को पढ़ कर "पथ भूल न जाना पथिक कहीं...." की याद आती है.
ReplyDeleteआभार शास्त्री जी.