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Sunday, May 4, 2014

"सुख का सूरज-मेरी बात"



मेरी बात
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नहीं जानता कैसे बन जाते हैं, मुझसे गीत-गजल।
ना जाने मन के नभ पर, कब छा जाते गहरे बादल।।

ना कोई कापी ना कागज, ना ही कलम चलाता हूँ।
खोल पेजमेकर को, हिन्दी-टंकण करता जाता हूँ।।

देख छटा बारिश की, अंगुलियाँ चलने लगती हंै।
कम्प्यूटर देखा तो उस पर, शब्द उगलने लगती हैं।।

नज़र पड़ी टीवी पर तो, अपनी हरकत कर जाती हैं।
चिडि़या का स्वर सुनकर, अपने करतब को दिखलाती हैं।।

बस्ता और पेंसिल पर, उल्लू बन क्या-क्या रचती हैं।
सेल-पफोन, तितली-रानी, इनके नयनों में सजती है।।

कौआ, भँवरा और पतंग भी, इनको बहुत सुहाती हैं।
नेता जी की टोपी, श्यामल गैया बहुत लुभाती है।।

सावन का झूला हो, चाहे होली की हों मस्त पुफहारें।
जाने कैसे दिखलातीं ये, बाल-गीत के मस्त नजारे।।

मैं तो केवल जाल-जगत पर, इन्हें लगाता जाता हूँ।
क्या कुछ लिख मारा है, मुड़कर नहीं देख ये पाता हूँ।।

जिन देवी की कृपा हुई है, उनका करता हूँ वन्दन।
सरस्वती माता का करता, कोटि-कोटि हूँ अभिनन्दन।।
        बचपन में हिन्दी की किताब में कविताएँ पढ़ता था तभी से यह धरणा बन गई थी कि जो रचनाएँ छन्दब( तथा गेय होती हैं, वही कविता की श्रेणी में आती हैं। आज तक मैं इसी धरणा को लेकर जी रहा हूँ। बचपन में मन में इच्छा होती थी कि मैं भी ऐसी ही कविताएँ लिखूँ।
        ऐसा नही है कि अतुकान्त रचनाएँ मुझे अच्छी नहीं लगती हैं। लेकिन विडम्बना यह है कि मैं आज भी इनको गद्य ही मानता हूँ। कक्षा-9 तक आते-आते मैंने तुकबन्दी
भी करनी शुरू कर दी थी और यदा-कदा रचना भी करने लगा था। लेकिन सन् 2008 के अन्त तक भी मेरे पास मात्रा 80-90 रचनाएँ ही थीं।
            जनवरी 2009 में एक दिन मेरे मित्रा रावेन्द्रकुमार रवि मेरे पास आये और कहने लगे कि मैंने सरस पायसके नाम से एक ब्लाॅग बनाया है। उस समय मुझे यह पता भी नही था कि ब्लाॅग क्या होता है? कभी-कभार अखबार में पढ़ लिया करता था कि अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लाॅग मे यह लिखा...!
          अब ब्लाॅगिंग की बात चली तो रवि जी बताने लगे कि इसके लिए कम्प्यूटर के साथ नेट का कनेक्शन होना भी जरूरी है। मैंने उन्हें बताया कि मेरे पुत्रों ने ब्राॅड-बैण्ड का अनलिमिटेड कनेक्शन लिया हुआ है किन्तु वे इसको 2-3 घण्टे ही प्रयोग में लाते हैं। मेरी रुचि को देखते हुए इन्होंने जी-मेल पर मेरी आई.डी. बनाई और उच्चारणके नाम से मेरा ब्लाॅग भी बना दिया। इसके बाद जब उन्होंने मेरी एक छोटी सी रचना पोस्ट की तो टिप्पणी के रूप में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, खटीमा के हिन्दी विभागाध्यक्ष-डाॅ. सि(ेश्वर सिंह ने मुझे जाल-जगत पर आने की बधई भी दे डाली।
           मैं 1998 से कम्प्यूटर पर पेजमेकर में काम करता रहा हूँ मगर ब्लाॅग पर रचनाएँ पोस्ट करना मुझे नहीं आता था। इस काम में डाॅ. सि(ेश्वर सिंह ने मेरी बहुत मदद की और मेरी ब्लाॅगिंग शुरू हो गई। जाल-जगत के ब्लाॅगरों ने भी मेरी पोस्टों पर अपनी सकारात्मक टिप्पणियाँ देकर मेरा उत्साह बढ़ाया। लगभग साढे़ पाँच साल में मेरी रचनाओं की तो नहीं, हाँ, तुकबन्दियों की संख्या 2100 का आँकड़ा जरूर पार कर गयी।
Sukh.jpg दिखाया जा रहा है           ब्लाॅगिंग में मुझे अपनी पत्नी श्रीमती अमर भारती और दोनों पुत्रों नितिन और विनीत का भी सहयोग मिला जिसके कारण मेरी ब्लाॅगिंग की धरा अनवरतरूप से जारी है! विगत कई वर्षों से बहन आशा शैली जी बार-बार पुस्तक प्रकाशन के लिए हठ कर रही थीं, परन्तु मेंने अध्कि ध्यान नहीं दिया। पिछले एक साल से डाॅ. सि(ेश्वर सिंह भी मुझे किताब छपवाने के लिए लगातार प्रेरित करते रहे। अन्ततः सुख का सूरजके रूप में मेरा यह काव्य संकलन आपके हाथों में है।
         यह सब इतनी जल्दी में हो गया कि इसमें कविताओं का चयन भी ठीक से नहीं हो पाया। मेरी शुरूआती और ब्लाॅगिंग के समय की रचनाएँ इसमें संकलित हैं। अतः इनमें कमियाँ तो निश्चितरूप से होंगी हीपिफर भी मुझे विश्वास है कि पाठक इन त्राुटियों पर ध्यान न देते हुए मेरी कविताओं का पूरा आनन्द लेंगे।
डाॅ.रूपचन्द्र शास्त्राी मयंक
खटीमा ;उत्तराखण्डद्ध
फोन/फैक्सः(05943)250129
चलभासः 07417619828, 09997996437

1 comment:

  1. aapke kavita-lekhan ke safar ka padhkar hardik prassanta hui .badhai

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