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Saturday, June 11, 2011

"बात समझ में आ गई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


विषय इतना जटिल है कि सोच रहा हूँ कि इसकी शरूआत कहाँ से करूँ।

पहाड़ मेरा घर है और इसके ठीक नीचे बसा हुआ मैदान मेरा आँगन है।
जिन दिनों सरदी कुछ ज्यादा बढ़ जाती है। नेपाल के पहाड़ी क्षेत्र से बहुत सारे बच्चे इन मैदानी भागों में नौकरी करने के लिए आ जाते हैं। ये अक्सर घरों या होटलों में साफ-सफाई करते या झूठे बरतन बलते हुए देखे जा सकते हैं। इनकी उम्र 10 साल से 12 साल के बीच होती है। बड़े होने पर ये दिल्ली या बम्बई जैसे महानगरों में पलायन कर जाते हैं।
क्या कारण है कि इन बालकों को घर से बिल्कुल भी मोह नही होता है? जबकि हमारे घरों के बालक माता-पिता से इतना मोह रखते हैं कि विवाह होने तक माता-पिता और घर को छोड़ने की कल्पना भी नही कर सकते।
मैंने जब गहराई से इस पर विचार किया तो बात समझ में आ गई।
मैं नेपाल देश के बिल्कुल करीब में रहता हूँ।

जहाँ माताएँ अपने एक महीने के बालक को भी पीठ से बाँध कर चलती हैं। जबकि हमारे घरों की माताएँ अपने दो वर्ष के बच्चे को भी अपनी छाती के साथ लगा कर रखती है। यदि कहीं जायेगी तो वो बच्चे को सीने से लगा कर ही चलेंगी।
बस यही तो अन्तर होता है, छाती से लगा कर पले बालकों और पीठ के पले बालकों में।
छाती से लगा कर पले बालक हृदय के करीब होते हैं और पीठ के पले बालक हृदय के दूर होते हैं।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)

3 comments:

  1. छाती से लगा कर पले बालक हृदय के करीब होते हैं और पीठ के पले बालक हृदय के दूर होते हैं।
    बिल्कुल सही बात है! उम्दा प्रस्तुती!

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  2. बहुत सही आकलन किया है…………॥

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  3. बिल्कुल सही बात है! उम्दा प्रस्तुती|

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