मित्रों!
आज अपने काव्य-संकलन
से माँ वीणापाणि की वन्दना के रूप में
पहली रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ।
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तुम बिन सूना मेरा आँगन,
बाट जोहता द्वार।
उर में करो निवास शारदे,
मन के हरो विकार।।
मेरा वन्दन स्वीकार करो।
माँ बस इतना उपकार करो।।
मुझमें कोई विज्ञान नही,
कविता का कुछ भी ज्ञान नही,
अपनी त्रुटियों का भान नही,
मानस में मधुर विचार भरो।
माँ बस इतना उपकार करो।।
मुझमें भाषा चातुर्य नही,
शब्दों का भी प्राचुर्य नही,
वाणी में भी माधुर्य नही,
छन्दों को तुम साकार करो।
माँ
बस इतना उपकार करो।।
तुलसी
जैसी है भक्ति नही,
मीरा
सी है आसक्ति नही,
मुझमें
कोई अभिव्यक्ति नही,
छल-छद्म-प्रपंच
विकार हरो।
माँ
बस इतना उपकार करो।।
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Friday, July 19, 2013
"माँ बस इतना उपकार करो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सुन्दर वंदना ...
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई आपको "सुख का सूरज " पुस्तक प्रकाशन की !
सुन्दर वंदना .
ReplyDeleteसुन्दर वंदना .
ReplyDeletebahut hi sundar
ReplyDeleteवंदना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो !
ReplyDeleteवाह वाह बहुत सुन्दर वन्दना जैसे मेरे मन के भाव
ReplyDelete
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर प्रार्थना जैसे हर दिल की प्रार्थना !
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