मित्रों!
आज अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से
एक गीत पोस्ट कर रहा हूँ!
"लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए"
मन-सुमन हों खिले, उर से उर हों मिले,
लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए।
ज्ञान-गंगा बहे, शन्ति और सुख रहे-
मुस्कराता हुआ वो वतन चाहिए।१।
दीप आशाओं के हर कुटी में जलें,
राम-लछमन से बालक, घरों में पलें,
प्यार ही प्यार हो, प्रीत-मनुहार हो-
देश में सब जगह अब अमन चाहिए।
लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए।२।
छेनियों और हथौड़ों की झनकार हो,
श्रम-श्रजन-स्नेह दें, ऐसे परिवार हों,
खेत, उपवन सदा सींचती ही रहे-
ऐसी दरिया-ए गंग-औ-जमुन चाहिए।
लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए।३।
आदमी से न इनसानियत दूर हो,
पुष्प, कलिका सुगन्धों से भरपूर हो,
साज सुन्दर सजें, एकता से बजें,
चेतना से भरे, मन-औ-तन चाहिए।
लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए।४।
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Sunday, July 28, 2013
"लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार गुरु जी-
आदमी से न इनसानियत दूर हो,
ReplyDeleteपुष्प, कलिका सुगन्धों से भरपूर हो,
साज सुन्दर सजें, एकता से बजें,
चेतना से भरे, मन-औ-तन चाहिए।
लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए।
बहुत सुन्दर भावों की माला