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Sunday, July 28, 2013

"लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मित्रों!
आज अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से
एक गीत पोस्ट कर रहा हूँ!
"लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए"
मन-सुमन हों खिले, उर से उर हों मिले
लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए। 
ज्ञान-गंगा बहे, शन्ति और सुख रहे- 
मुस्कराता हुआ वो वतन चाहिए।१। 
दीप आशाओं के हर कुटी में जलें
राम-लछमन से बालक, घरों में पलें
प्यार ही प्यार हो, प्रीत-मनुहार हो- 
देश में सब जगह अब अमन चाहिए। 
लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए।२। 
छेनियों और हथौड़ों की झनकार हो
श्रम-श्रजन-स्नेह दें, ऐसे परिवार हों
खेत, उपवन सदा सींचती ही रहे- 
ऐसी दरिया-ए गंग-औ-जमुन चाहिए। 
लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए।३। 
आदमी से न इनसानियत दूर हो
पुष्प, कलिका सुगन्धों से भरपूर हो
साज सुन्दर सजें, एकता से बजें
चेतना से भरे, मन-औ-तन चाहिए। 
लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए।४।

2 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार गुरु जी-

    ReplyDelete
  2. आदमी से न इनसानियत दूर हो,
    पुष्प, कलिका सुगन्धों से भरपूर हो,
    साज सुन्दर सजें, एकता से बजें,
    चेतना से भरे, मन-औ-तन चाहिए।
    लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए।

    बहुत सुन्दर भावों की माला

    ReplyDelete

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