मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से
![]()
एक गीत
"बादल घने हैं"
कभी कुहरा, कभी सूरज,
कभी आकाश में बादल घने हैं।
दुःख और सुख भोगने को,
जीव के तन-मन बने हैं।।
आसमाँ पर चल रहे हैं,
पाँव के नीचे धरा है,
कल्पना में पल रहे हैं,
सामने भोजन धरा है,
पा लिया सब कुछ मगर,
फिर भी बने हम अनमने हैं।
दुःख और सुख भोगने को,
जीव के तन-मन बने हैं।।
आयेंगे तो जायेंगे भी,
ज़िन्दगी में खायेंगें भी,
हाट मे सब कुछ सजा है,
लायेंगे तो पायेंगे भी,
धार निर्मल सामने है,
किन्तु हम मल में सने हैं।
दुःख और सुख भोगने को,
जीव के तन-मन बने हैं।।
देख कर करतूत अपनी,
चाँद-सूरज हँस रहे हैं,
आदमी को बस्तियों में,
लोभ-लालच डस रहे हैं,
काल की गोदी में,
बैठे ही हुए सारे चने हैं।
दुःख और सुख भोगने को,
जीव के तन-मन बने हैं।।
|
Followers
Showing posts with label बादल घने हैं. Show all posts
Showing posts with label बादल घने हैं. Show all posts
Friday, January 3, 2014
"बादल घने हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Subscribe to:
Posts (Atom)