मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से
एक गीत
"कैसे भाव भरूँ...?"
कैसे मैं दो शब्द
लिखूँ और कैसे उनमें भाव भरूँ?
तन-मन के रिसते
छालों के, कैसे अब मैं घाव
भरूँ?
मौसम की विपरीत चाल
है,
धरा रक्त से हुई
लाल है,
दस्तक देता कुटिल
काल है,
प्रजा तन्त्र का
बुरा हाल है,
बौने गीतों में
कैसे मैं, लाड़-प्यार और चाव
भरूँ?
तन-मन के रिसते
छालों के, कैसे अब मैं घाव
भरूँ?
पंछी को परवाज
चाहिए,
बेकारों को काज
चाहिए,
नेता जी को राज
चाहिए,
कल को सुधरा आज
चाहिए,
उलझे ताने और बाने
में, कैसे सरल स्वभाव
भरूँ?
तन-मन के रिसते
छालों के, कैसे अब मैं घाव
भरूँ?
भाँग कूप में पड़ी
हुई है,
लाज धूप में खड़ी
हुई है,
आज सत्यता डरी हुई
है,
तोंद झूठ की बढ़ी
हुई है,
रेतीले रजकण में
कैसे, शक्कर के अनुभाव
भरूँ?
तन-मन के रिसते छालों के, कैसे अब मैं घाव भरूँ? |
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Sunday, December 22, 2013
"कैसे भाव भरूँ...?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत खूबसूरत कविता......सादर नमन
ReplyDeleteसुन्दर !
ReplyDelete~सादर
बहुत खुबसूरत कविता !
ReplyDeleteनई पोस्ट चाँदनी रात
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