मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से
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एक गीत
"थकने लगी ज़िन्दग़ी है"
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जवानी में थकने लगी जिन्दगी है!!
जुगाड़ों से चलने लगी जिन्दगी है!!! कहीं है ज्वार और भाटा कहीं है, कहीं है सुमन और काँटा कहीं है, नफरत जमाने से होने लगी है! जवानी में थकने लगी जिन्दगी है!! जुगाड़ों से चलने लगी जिन्दगी है!!! कहीं है अन्धेरा कहीं चाँदनी है, कहीं शोक की धुन कहीं रागनी है, मगर गुम हुई गीत से नगमगी है! जवानी में थकने लगी जिन्दगी है!! जुगाड़ों से चलने लगी जिन्दगी है!!! दरिन्दों की चक्की में, घुन पिस रहे हैं, चन्दन को बगुले भगत घिस रहे हैं, दिलों में इबादत नही तिश्नगी है! जवानी में थकने लगी जिन्दगी है!! जुगाड़ों से चलने लगी जिन्दगी है!!! धरा रो रही है, गगन रो रहा है, अमन बेचकर आदमी सो रहा है, सहमती-सिसकती हुई बन्दगी है! जवानी में थकने लगी जिन्दगी है!! जुगाड़ों से चलने लगी जिन्दगी है!!! |
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Thursday, December 26, 2013
"थकने लगी ज़िन्दग़ी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जिंदगी में भरी कटुता को उभारती रचना !
ReplyDeleteनई पोस्ट मेरे सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
नई पोस्ट ईशु का जन्म !
बहुत सटीक और यथार्थ से जुडी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...
मन के फ़ूल खिलें ना खिलें
ReplyDeleteखुशियों की धूप मिले ना मिले
चलना ही तो जीवन है
मंज़िल की झलक मिले ना मिले
bahut sundar......
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