मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से
आगे को बढ़ते जाओ
उत्कर्षों के उच्च शिखर पर चढ़ते जाओ।
पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।।
पगदण्डी है कहीं सरल तो कहीं विरल है,
लक्ष्य नही अब दूर, सामने ही मंजिल है,
जीवन के विज्ञानशास्त्र को पढ़ते जाओ।
पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।।
अपने को तालाबों तक सीमित मत करना,
गंगा की लहरों-धाराओं से मत डरना,
आँधी, पानी, तूफानों से लड़ते जाओ।
पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।।
जो करता है कर्म, वही फल भी पाता है,
बिना परिश्रम नही निवाला भी आता है,
ज्ञान सिन्धु से मन की गागर भरते जाओ।
पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।।
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Thursday, February 13, 2014
“आगे को बढ़ते जाओ!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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umda aur manmohak.
ReplyDeletedhanywaad.
बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteBAHUT SUNDAR
ReplyDeleteNEW POST बनो धरती का हमराज !
atisundar prerak rachna ...
ReplyDeleteअपने को तालाबों तक सीमित मत करना,
गंगा की लहरों-धाराओं से मत डरना,
आँधी, पानी, तूफानों से लड़ते जाओ।
पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।।