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Monday, February 3, 2014

"मस्त बसन्ती रुत आयी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से 
   
एक गीत
गेंहूँ झूम रहे खेतों में,
उपवन में बहार आयी है।
उतर गये हैं कोट सभी के,
मस्त बसन्ती रुत आयी है।।

मूँगफली अब नही सुहाती,
गजक-रेबड़ी नही लुभाती,
चाट-पकौड़ी मन भायी है।
मस्त बसन्ती रुत आयी है।।

चहक रही पेड़ों पर चिड़ियाँ,
महक रहीं बालाएँ-बुढ़ियाँ,
डाली-डाली गदरायी है।
मस्त बसन्ती रुत आयी है।।

दिन आये हैं प्रीत-प्रेम के,
मन भाये हैं गीत-प्रेम के,
मन में सरसों लहराई है। 
मस्त बसन्ती रुत आयी है।।

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