मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से
गीत
"...उम्र तमाम हुई"
अपनों की रखवाली करते-करते उम्र तमाम हुई।
पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।।
सुख आये थे संग में रहने.
डाँट-डपट कर भगा दिया,
जाने अनजाने में हमने,
घर में ताला लगा लिया,
पवन-बसन्ती दरवाजों में, आने में नाकाम हुई।
पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।।
मन के सुमन चहकने में है,
अभी बहुत है देर पड़ी,
गुलशन महकाने को कलियाँ,
कोसों-मीलों दूर खड़ीं,
हठधर्मी के कारण सारी आशाएँ हलकान हुई।
पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।।
चाल-ढाल है वही पुरानी,
हम तो उसी हाल में हैं,
जैसे गये साल में थे,
वैसे ही नये साल में हैं,
गुमनामी के अंधियारों में, खुशहाली परवान हुई।
पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।।
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Friday, February 21, 2014
"उम्र तमाम हुई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बढ़िया प्रस्तुति -
ReplyDeleteआभार गुरु जी-
sacchi bat .....kaise samay bit jata hai pata hi nahi chalta ....
ReplyDeleteगुमनामी के अंधियारों में, खुशहाली परवान हुई।
ReplyDelete- खुशहाली को ढूँढने के लिए कौन निकले ,सब अपने-अपने में सिमटे रह गए हैं !
jeevan ka katu satya sunder dhang se prastut kiya aapne
ReplyDeleteshubhkamnayen