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Wednesday, November 13, 2013

"गद्दार मेरा वतन बेच देंगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


मेरे काव्य संग्रह "सुख का सूरज" से
एक ग़ज़ल
"गद्दार मेरा वतन बेच देंगे"
ये गद्दार मेरा वतन बेच देंगे।
ये गुस्साल ऐसे कफन बेच देंगे।

बसेरा है सदियों से शाखों पे जिसकी,
ये वो शाख वाला चमन बेच देंगे।

सदाकत से इनको बिठाया जहाँ पर,
ये वो देश की अंजुमन बेच देंगे।

लिबासों में मीनों के मोटे मगर हैं,
समन्दर की ये मौज-ए-जन बेच देंगे।

सफीना टिका आब-ए-दरिया पे जिसकी,
ये दरिया-ए गंग-औ-जमुन बेच देंगे।

जो कोह और सहरा बने सन्तरी हैं,
ये उनके दिलों का अमन बेच देंगे।

जो उस्तादी अहद-ए-कुहन हिन्द का है,
वतन का ये नक्श-ए-कुहन बेच देंगे।

लगा हैं इन्हें रोग दौलत का ऐसा,
बहन-बेटियों के ये तन बेच देंगे।

ये काँटे हैं गोदी में गुल पालते हैं,
लुटेरों को ये गुल-बदन बेच देंगे।

हो इनके अगर वश में वारिस जहाँ का,
ये उसके हुनर और फन बेच देंगे।

जुलम-जोर शायर पे हो गर्चे इनका,
ये उसके भी शेर-औ-सुखन बेच देंगे।

‘मयंक’ दाग दामन में इनके बहुत हैं,
ये अपने ही परिजन-स्वजन बेच देंगे।

4 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार

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  2. nice post computer and internet ke nayi jankaari tips and trick ke liye dhekhe technik ki duniya www.hinditechtrick.blogspot.com

    ReplyDelete
  3. सुन्दर है बहुत धार लिए है तेज़ -

    जो उस्तादी अहद-ए-कुहन हिन्द का है,
    वतन का ये नक्श-ए-कुहन बेच देंगे।

    लगा हैं इन्हें रोग दौलत का ऐसा,
    बहन-बेटियों के ये तन बेच देंगे।

    ये काँटे हैं गोदी में गुल पालते हैं,
    लुटेरों को ये गुल-बदन बेच देंगे।

    हो इनके अगर वश में वारिस जहाँ का,
    ये उसके हुनर और फन बेच देंगे।

    जुलम-जोर शायर पे हो गर्चे इनका,
    ये उसके भी शेर-औ-सुखन बेच देंगे।

    अर्थ की भाव की प्रभाव की।

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  4. दिनांक 20/06/2017 को...
    आप की रचना का लिंक होगा...
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
    आप की प्रतीक्षा रहेगी...

    ReplyDelete

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