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Friday, November 29, 2013

"नया घाघरा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्य संग्रह "सुख का सूरज से
एक गीत
"नया घाघरा

धानी धरती ने पहना नया घाघरा।
रूप कञ्चन कहीं हैकहीं है हरा।।

पल्लवित हो रहापेड़-पौधों का तन,
हँस रहा है चमनगा रहा है सुमन,
नूर ही नूर हैजंगलों में भरा।
रूप कञ्चन कहीं हैकहीं है हरा।।

देख मधुमास की यह बसन्ती छटा
शुक सुनाने लगेअपना सुर चटपटा,
पंछियों को मिला है सुखद आसरा।  
रूप कञ्चन कहीं हैकहीं है हरा।। 

देश-परिवेश सारा महकने लगा,
टेसू अंगार बनकर दहकने लगा
सात रंगों से सजने लगी है धरा।
रूप कञ्चन कहीं हैकहीं है हरा।।

4 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय-

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  2. बहुत सुंदर रचना.

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  3. वाह ! बहुत ही सुन्दर गीत ..

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