मेरे काव्य संग्रह "सुख का सूरज" से
एक गीत
"सवेरा"
एक गीत
"सवेरा"
दिन चार चाँदनी के,
फिर छायेगा अन्धेरा।
दो दिन की जिन्दगी में,
क्या पायेगा सवेरा।।
जीवन के इस सफर में,
मरुथल उजाड़ होंगे,
खाई-कुएँ भी होंगे,
ऊँचे पहाड़ होंगे,
चलना ही जिन्दगी है,
करना नही बसेरा।।
करना न कामनाएँ,
सपने नही सजाना,
आया है जो जगत में,
उसको पड़ा है जाना,
दुनिया है धर्मशाला,
कुछ भी नही है तेरा।।
पाया अगर है जीवन,
निष्काम बनके जीना,
सुख-दुख, सरल-गरल को,
चुप-चाप होके पीना,
काजल की कोठरी में,
उजला ही रखना डेरा।।
दिन चार चाँदनी के,
फिर छायेगा अन्धेरा।
दो दिन की जिन्दगी में,
क्या पायेगा सवेरा।।
बहुत सुंदर.
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ReplyDeleteसुन्दर रचना।।
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एशेज की कहानी
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteउत्कृष्ट भावों से सजी बहुत सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteपाया अगर है जीवन,
ReplyDeleteनिष्काम बनके जीना,
सुख-दुख, सरल-गरल को,
चुप-चाप होके पीना,
काजल की कोठरी में,
उजला ही रखना डेरा।।
दिन चार चाँदनी के,
फिर छायेगा अन्धेरा।
दो दिन की जिन्दगी में,
क्या पायेगा सवेरा।।
जीवन दर्शन सार, दिया है
इतना कुछ उपकार किया है।
सुन्दर भावों का संचार करती प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सारगर्भित रचना...
ReplyDeleteवाह ...लयबद्ध रचना पढ़ने का आनन्द ही कुछ और होता है ...शुक्रिया
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