Followers

Thursday, January 30, 2014

"भवसागर को कैसे पार करेगा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से 
   
एक गीत
जो बहती गंगा में अपने हाथ नही धो पाया, 
जीवनरूपी भवसागर को, कैसे पार करेगा? 
--------
जो मानव-चोला पाकर इन्सान नही हो पाया, 
वो कुदरत की संरचना को, कैसे प्यार करेगा?
--------
जो लेने का अभिलाषी है, देने में पामर है, 
जननी-जन्मभूमि का. वो कैसे आभार करेगा? 
वो कुदरत की संरचना को, कैसे प्यार करेगा?
--------
जो स्वदेश का खाता और परदेशों की गाता है, 
वो संकटमोचन बनकर, कैसे उद्धार करेगा? 
वो कुदरत की संरचना को, कैसे प्यार करेगा?
--------
जो खेतों और खलिहानों में, चिंगारी दिखलाता. 
प्रेम-प्रीत के घर का वो, कैसे आधार धरेगा? 
वो कुदरत की संरचना को, कैसे प्यार करेगा?
--------
बना मील का पत्थर जो, पथ को इंगित करता है,
वो संगी-साथी बनकर, कैसे व्यवहार करेगा?
वो कुदरत की संरचना को, कैसे प्यार करेगा?

No comments:

Post a Comment

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।