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Thursday, March 13, 2014

"दूषित हुआ वातावरण" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से 
   
"दूषित हुआ वातावरण"
सभ्यता, शालीनता के गाँव में, 
खो गया जाने कहाँ है आचरण? 
कर्णधारों की कुटिलता देखकर, 
देश का दूषित हुआ वातावरण। 

सुर हुए गायब, मृदुल शुभगान में, 

गन्ध है अपमान की, सम्मान में, 
आब खोता जा रहा है आभरण। 
खो गया जाने कहाँ है आचरण? 

शब्द अपनी प्राञ्जलता खो रहा, 

ह्रास अपनी वर्तनी का  हो रहा, 
रो रहा समृद्धशाली व्याकरण। 
खो गया जाने कहाँ है आचरण? 

लग रहे घट हैं भरे, पर रिक्त हैं, 

लूटने में राज को, सब लिप्त हैं, 
पंक से मैला हुआ सब आवरण। 
खो गया जाने कहाँ है आचरण?

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