मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से
"प्यार करते हैं हम पत्थरों से"
हम बसे हैं पहाड़ों के परिवार में।
प्यार करते हैं हम पत्थरों से सदा,
ये तो शामिल हमारे हैं संसार में।।
देवता हैं यही, ये ही भगवान हैं,
सभ्यता से भरी एक पहचान हैं,
हमने इनको सजाया है घर-द्वार में।
ये तो शामिल हमारे हैं परिवार में।।
दर्द सहते हैं और आह भरते नही,
ये कभी सत्य कहने से डरते नही,
गर्जना है भरी इनकी हुंकार में।
ये तो शामिल हमारे हैं परिवार में।।
साथ करते नही सिरफिरों का कभी,
ध्यान धरते नही काफिरों का कभी,
ये तो रहते हैं भक्तों के अधिकार में।
ये तो शामिल हमारे हैं परिवार में।।
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Monday, March 17, 2014
"प्यार करते हैं हम पत्थरों से" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...होली की हार्दिक शुभकामनायें.....Bhramar5
ReplyDeleteसुंदर रचना॥
ReplyDeleteमूक हैं तो क्या ... पहाड़ों पे पत्तर भी बात करते हैं ... परिवार का हिस्सा हैं .. सुन्दर भावमय ...
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