मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से
"हमें संस्कार प्यारे हैं"
उजाला ले के आये हो तो अपने मुल्क में छाँटो,
हमें अँधियार प्यारे हैं।
निवाला ले के आये हो तो अपने मुल्क में चाटो.
हमें किरदार प्यारे हैं।
नही जाती हलक के पार, भारी भीख की रोटी,
नही होगी यहाँ पर फिट, तुम्हारी सीख की गोटी,
बबाला ले के आये हो तो, अपने मुल्क में काटो,
हमें सरदार प्यारे हैं।
फिजाँ कैसी भी हो हर हाल में हम मस्त रहते हैं,
यहाँ के नागरिक हँसते हुए हर कष्ट सहते हैं.
गज़ाला ले के आये हो तो अपने मुल्क में बाँटो,
हमें दस्तार प्यारे हैं।
तुम अपने पास ही रक्खो, ये नंगी सभ्यता गन्दी,
हमारे पास है अपनी, हुनर वाली अक्लमन्दी,
हमें संस्कार प्यारे हैं।
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Friday, March 21, 2014
"हमें संस्कार प्यारे हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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Great posst thanks
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