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Monday, April 14, 2014

"जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से
गीत
जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए, 
दे रहे हैं हमें शुद्ध-शीतल पवन! 
खिलखिलाता इन्हीं की बदौलत सुमन!! 
रत्न अनमोल हैं ये हमारे लिए। 
जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए।।

आदमी के सितम-जुल्म को सह रहे, 
परकटे से तने निज कथा कह रहे, 
कर रहे हम इन्हीं का हमेशा दमन! 
सह रहे ये सभी कुछ हमारे लिए। 
जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए।। 

कर रहे जड़-जगत पर ये उपकार हैं, 
वन सभी के लिए मुफ्त उपहार हैं, 
रोग और शोक का होता इनसे शमन! 
दूत हैं ये धरा के हमारे लिए। 
जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए।। 
ये हमारी प्रदूषित हवा पी रहे, 
घोटकर हम इन्ही को दवा पी रहे, 
देवताओं का हम कर रहे हैं दमन! 
तन हवन कर रहे ये हमारे लिए। 
जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए।।

2 comments:

  1. जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए,
    दे रहे हैं हमें शुद्ध-शीतल पवन!
    खिलखिलाता इन्हीं की बदौलत सुमन!!
    रत्न अनमोल हैं ये हमारे लिए।
    जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए।।

    सुन्दर मानवीकरण हुआ इस भावप्रवण उद्बोधन में हमारी हवा पानी और मिट्टी का पारितंत्रों का :

    जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए,
    दे रहे हैं हमें शुद्ध-शीतल पवन!
    खिलखिलाता इन्हीं की बदौलत सुमन!!
    रत्न अनमोल हैं ये हमारे लिए।
    जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए।।

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  2. अनमोल हैं पौधे हमारे लि‍ए...सच लि‍खा..

    ReplyDelete

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