अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से
घनाक्षरी छन्द
"कैसे जी पायेंगे?"
नम्रता उदारता का पाठ, अब पढ़ाये कौन?
उग्रवादी छिपे जहाँ सन्तों के वेश में।
साधु और असाधु की पहचान अब कैसे हो,
दोनो ही सुसज्जित हैं, दाढ़ी और केश में।
कैसे खेलें रंग-औ-फाग, रक्त के लगे हैं दाग,
नगर, प्रान्त, गली-गाँव, घिरे हत्या-क्लेश में।
गांधी का अहिंसावाद, नेहरू का शान्तिवाद,
हुए निष्प्राण, हिंसा के परिवेश में ।
इन्दिरा की बलि चढ़ी, एकता में फूट पड़ी,
प्रजातन्त्र हुआ बदनाम देश-देश में।
मासूमों की हत्याये दिन-प्रतिदिन होती,
कैसे जी पायेंगे, कसाइयों के देश में।
उग्रवादी छिपे जहाँ सन्तों के वेश में।
साधु और असाधु की पहचान अब कैसे हो,
दोनो ही सुसज्जित हैं, दाढ़ी और केश में।
कैसे खेलें रंग-औ-फाग, रक्त के लगे हैं दाग,
नगर, प्रान्त, गली-गाँव, घिरे हत्या-क्लेश में।
गांधी का अहिंसावाद, नेहरू का शान्तिवाद,
हुए निष्प्राण, हिंसा के परिवेश में ।
इन्दिरा की बलि चढ़ी, एकता में फूट पड़ी,
प्रजातन्त्र हुआ बदनाम देश-देश में।
मासूमों की हत्याये दिन-प्रतिदिन होती,
कैसे जी पायेंगे, कसाइयों के देश में।
चुनौती यही है कि देश अपना है...हमें इसे ही बनाना है परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों...पलायन नहीं कर सकते...
ReplyDeleteapne aaspass ke kasai ka moral down karke ham shaan se jee sakte hain .........
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