Followers
Saturday, November 5, 2011
" भगवान के घर देर है, अन्धेर नहीं!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
Monday, October 17, 2011
"दिन का प्रारम्भ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
इसका उत्तर मेरे विचार से यह है कि-
सूर्योदय का कोई सार्वभौमिक समय निश्चित नहीं है।
हमारे देश में कभी सूर्योदय पाँच बजे, कभी 6 बजे और कभी 7 बजे भी होता है। इसके अतिरिक्त दुनिया के सभी देशों में सूर्योदय का समय अलग-अलग होता है। इसलिए अगले दिन की गणना सूर्योदय से करना सम्भव नहीं है। लेकिन सारी दुनिया में मध्यरात्रि का समय 12 बजे निश्चित है। अतः दिन का आरम्भ मध्यरात्रि 12 बजे के बाद से ही माना जाता है।
Friday, September 16, 2011
"रूप इतना खूबसूरत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
"रूप" कितना खूबसूरत
Wednesday, August 17, 2011
Anna Hajare is Anna Karore now
आखिर श्री राहुल गांधी को क्या हक हैं कि वह किसी की रिहाई या बंदी बनाने के फैसले की प्रकिया में शामिल हो सकें।
फिर देखें कि कितना जनबल अन्ना के साथ आ गया। कि इन्हें अन्ना हजारे नही अन्ना करोडे कहा जाना चाहिए।
आप सभी पाठकों से मेरा अनुरोध हैं कि अपने स्थानीय सांसद, प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति के नाम अन्ना के लोकपाल बिल के संबंध में एक एक पोस्टकार्ड जरूर भेजें। एवं कम से कम 10 लोगों को पोस्टकार्ड भेजने हेतु प्रेरित करें
पोस्टकार्ड में लिखे जाने वाले ज्ञापन का मैटर निम्न रखा जा सकता हैं।
सांसद को लिखा जाने वाला पत्र
हमने आपको अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए संसद में भेजा हैं। न कि उसे बढाने के लिए। शायद ये हमारी गलती हो गई।कृप्या कर हमने आपको चुनकर जो गलती कर दी उसकी और सजा हमें ना देवें। अरे इससे अच्छी तो गुलामी थी कम से कम हमें परेशान करने वाले पराये तो थे, अब तो अपने ही हमें घाव देने लगे हैं। ये काहे की आजादी हैं। ये तो सत्ता का हस्तांतरण हैं। इसमें ज्यादा तकलीफ है क्योंकि आप हमारे हैं और आप ही हमें परेशान करें। लोकपाल बिल पारित करावें।
भवदीयः
आपके व आपकी सरकार के जुल्मों की सताई, आजादी के बाद भी आपकी गुलाम, आपकी जनता
प्रधानमंत्री को लिखा जाने वाला पत्र
हमने आपको अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए जिन्हें संसद में भेजा था शायद ये हमसे उन्हें चुनने में गलती हो गई। क्यांेकि उन्होने आपको अपना नेता चुन लिया। और इस कारण से देष का बेडा गर्क हो गया हैं। कृप्या कर हमने आपको चुनकर जो गलती कर दी उसकी और सजा हमें ना देवें। अरे इससे अच्छी तो गुलामी थी कम से कम हमें परेषान करने वाले पराये तो थे, अब तो अपने ही हमें घाव देने लगे हैं। ये काहे की आजादी हैं। ये तो सत्ता का हस्तांतरण हैं। इसमें ज्यादा तकलीफ है क्योंकि आप हमारे हैं और आप ही हमें परेशान करें। लोकपाल बिल पारित करावें। अरे सिंह साहब शर्म करो, ऐसी भी क्या मजबूरी।
भवदीयः
आपके व आपकी सरकार के जुल्मों की सताई, आजादी के बाद भी आपकी गुलाम, आपकी जनता
राष्ट्रपति को लिखा जाने वाला पत्र
आप भारत के संविधान द्वारा निर्मित सर्वोच्च पद पर आसीन हैं। हम जानते हैं कि आपका पद केवल मात्र एक रबर की मोहर के समान हैं। आपके हाथ में कुछ नही हैं। मगर आपको जो विषेषाधिकार प्राप्त हैं, उनका प्रयोग करें और इस जनता को परेषान करने वाली सरकार को सुधारें। आपसे हमें यही उम्मीद हैं। क्या आप हमारी समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रयास करके हमारी उम्मीदों पर खरी उतरेंगी या अपने पूर्व परिवार (अपनी राजनैतिक पार्टी) एवं पूर्व मित्रों (नेतागणों) के साथ रहकर अपना फर्ज अदा करेंगी। और देष को बर्बाद होते देखना पसंद करेंगी। कृप्या कर आपको चुनकर जो गलती कर दी उसकी और सजा हमें ना देवें। लोकपाल बिल पारित करावें अरे इससे अच्छी तो गुलामी थी कम से कम हमें परेषान करने वाले पराये तो थे, अब तो अपने ही हमें घाव देने लगे हैं। ये काहे की आजादी हैं। ये तो सत्ता का हस्तांतरण हैं। इसमें ज्यादा तकलीफ है क्योंकि आप हमारे हैं और आप ही हमें परेशान करें।
भवदीयः
आपके व आपकी सरकार के जुल्मों की सताई, आजादी के बाद भी आपकी गुलाम, आपकी जनता
Sunday, August 7, 2011
"अन्तरराष्ट्रीय मित्रता दिवस आज ही है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
|
Thursday, June 23, 2011
"मोहब्बत " हो गयी
नहीं हुई
तुझे पाया
नहीं हुई
तुझे चाहा
नहीं हुई
मगर
जिस दिन
तुझे जाना
"मोहब्बत "
हो गयी
Monday, June 13, 2011
नैनन पड़ गए फीके
नैनन पड़ गए फीके
रो-रो धार अँसुवन की
छोड़ गयी कितनी लकीरें
आस सूख गयी
प्यास सूख गयी
सावन -भादों बीते सूखे
सखी री मेरे
नैनन पड़ गए फीके
बिन अँसुवन के
अँखियाँ बरसतीं
बिन धागे के
माला जपती
हो गए हाल
बिरहा के
सखी री मेरे
नैनन पड़ गए फीके
श्याम बिना फिरूं
हो के दीवानी
लोग कहें मुझे
मीरा बावरी
कैसे कटें
दिन बिरहन के
सखी री मेरे
नैनन पड़ गए फीके
हार श्याम को
सिंगार श्याम को
राग श्याम को
गीत श्याम को
कर गए
जिय को रीते
सखी री मेरे
नैनन पड़ गए फीके
Saturday, June 11, 2011
"बात समझ में आ गई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


Saturday, April 23, 2011
"सीनियर सिटीजन बलफेयर सोसायटी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
सीनियर सिटीजन वैलफेयर सोसायटी (पंजीकृत संख्या-21/2010-11)
Monday, April 18, 2011
हनुमान जयंती विशेष
राम का नाम ना किसी ने गाया होता
सीता का पता ना लगाया होता
तो रावण पर विजय ना पाई होती
सीना फ़ाड ना दिखाया होता
तो राम महिमा ना किसी ने जानी होती
आज हनुमान जयंती पर
कष्ट निवारक दुखहर्ता
सह्रदयी राम भक्त
हनुमान को
कोटि कोटि नमन है
Wednesday, April 6, 2011
ब्लॉगर मीट में जिसका नाम है FIND RAJASTHAN
रानी जिला पाली राजस्थान मैं दिनांक 1 व 2 मई को आयोजित होने वाले ब्लॉगर मीट में जिसका नाम है FIND RAJASTHAN
इसमें प्रथम दिवस में आने के बाद आराम विश्राम के पश्चात परिचय सत्र का आयोजन किया जायेगा, इसके पश्चात रात्रि के समय एक गोष्ठी होगी जिसमे कुछ ज्वलंत मुद्दों पर आप सभी ब्लागरों से चर्चा की जायेगी
दुसरे दिन नजदीकी भ्रमण स्थान रणकपुर जैन मंदिर जो की विश्व प्रशिद्ध है का भ्रमण किया जायेगा .
नजदीकी रेलवे स्टेशन रानी और फालना है जयपुर दिल्ली और मुंबई तक से सीधी ट्रेन सुविधा है साथ ही बिहार और उत्तर प्रदेश से भी कई ट्रेने चलती है
आप केवल अपना स्थान बता दीजिये पूर्ण ट्रेन की समय सारणी भिजवा दी जाएगी
कृपया कर आने वाले ब्लॉगर अपना नाम दिनांक 25 अप्रेल तक दे देवें ताकि कार्यक्रम की रुपरेखा प्रकाशित हो सके
संपर्क करें bloggermeet@naradnetwork.in
tarun@naradnetwork.in
Mobile No. 9251610562
JAI HIND
Saturday, March 19, 2011
"उस होली की याद अभी भी ताजा है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
उस होली की याद अभी भी ताजा है!
लगभग 37 साल पुरानी बात है। उस समय मेरी नई-नई शादी हुई थी! पहली होली ससुराल में मनानी थी। इसलिए मैं और मेरी श्रीमती जी होली के एक दिन पहले ही रुड़की पहुँच गए थे।
उस समय मेरी इकलौती साली का विवाह नहीं हुआ था। उसे भी जीजाजी के साथ होली खेलने की बहुत उमंग चढ़ी थी। रात में खाना खाकर सभी लोग एक बड़े कमरे में इकट्ठे हो गये। उस कमरे में छत पर लगे बिजली के पंखे के साथ तीन गुब्बारे लटके हुए थे।
सभी लोग ढोल-मंजीरे के साथ गाना गाने में और हँसी ठिठोली में मशगूल थे।तभी मेरी सलहज साहिबा ने मुझे डांस करने के लिए राजी कर लिया और नाच-गाना होने लगा। मेरी साली तो न जाने कब से इस मौके की फिराक में थी।
जैसे ही मैं पंखे से लटके गुब्बारों के नीचे आया साली ने सेफ्टीपिन से इन गुब्बारों को फोड़ दिया और बहुत गाढ़े लाल-हरे और बैंगनी रंग से मैं सराबोर हो गया।
आज भी वो होली मुझे भुलाए नहीं भूलती!
Tuesday, March 15, 2011
"श्रीमद्भागवद्गीता से ..............."
श्लोक
जो- भक्त जिस -जिस देवता का श्रद्धा पूर्वक पूजन करना चाहता है ,उस- उस देवता के प्रति मैं उसकी श्रद्धा को दृढ़ कर देता हूँ ।
व्याख्या
भगवान कहते हैं ------जो- जो मनुष्य जिस- जिस देवता का भक्त होकर श्रद्धा पूर्वक भजन -पूजन करना चाहता है उस -उस मनुष्य की श्रद्धा उस -उस देवता के प्रति में अचल कर देता हूँ । वे दूसरों में न लगकर मेरे में ही लग जायें -------ऐसा मैं नही करता। यद्यपि उन देवताओं में लगने से कामना के कारण उनका कल्याण नही होता ,फिर भी मैं उनको उनमें लगा देता हूँ तो जो मेरे में श्रद्धा - प्रेम रखते हैं ,अपना कल्याण करना चाहते हैं ,उनकी श्रद्धा को मैं अपने प्रति कैसे दृढ़ नही करूंगा अर्थात अवश्य करूंगा, कारण कि मैं प्राणिमात्र का सुहृद हूँ ।
इस पर शंका होती है कि आप सबकी श्रद्धा अपने में ही क्यूँ नही दृढ़ करते?इस पर भगवान मानो ये कहते हैं कि अगर में सबकी श्रद्धा को अपने प्रति दृढ़ करूँ तो मनुष्यजन्म कि स्वतंत्रता और सार्थकता कहाँ रही ?तथा मेरी स्वार्थपरता का त्याग कहाँ हुआ? अगर लोगो को अपने में ही लगाने का आग्रह करें तो ये कोई बड़ी बात नही क्यूंकि ऐसा बर्ताव तो दुनिया के स्वार्थी जीवों का होता है । अतः मैं ऐसा स्वभाव सिखाना चाहता हूँ जिससे मनुष्य अपने स्वार्थों का त्याग करके अपनी पूजा प्रतिष्ठा में ही न लगा रहे ,किसी को पराधीन न बनाये।
अब दूसरी शंका ये उठती है कि आप उनकी श्रद्धा को उन देवताओं के प्रति दृढ़ कर देते हैं इससे आपकी साधुता तो सिद्ध हो गई ,पर उन जीवों का तो आपसे विमुख होने पर अहित ही हुआ न ? इसका समाधान ये है कि अगर में उनकी श्रद्धा को दूसरों से हटाकर अपने में लगाने का भावः रखूँगा तो उनकी मेरे में अश्रद्धा हो जायेगी। परन्तु अगर में अपने में लगाने का भावः नही रखूँगा और उन्हें स्वतंत्रता दूंगा तो जो बुद्धिमान होंगे वे मेरे इस बर्ताव को देखकर मेरी ओरे आकृष्ट होंगे। अतः उनके उद्धार का यही तरीका बढ़िया है।
अब तीसरी शंका यह होती है कि जब आप स्वयं उनकी श्रद्धा को दृढ़ कर देते हैं तो फिर कोई उस श्रद्धा को मिटा ही नही सकता। फिर तो उसका पतन होता ही चला जाएगा। इसका समाधान ये है कि मैं उनकी श्रद्दा को देवताओं के प्रति दृढ़ करता हूँ दूसरों के प्रति नही -------ऐसी बात नही है । मैं तो उनकी इच्छा के अनुसार ही उनकी श्रद्धा को दृढ़ करता हूँ और अपनी इच्छा को बदलने में मनुष्य स्वतंत्र है, योग्य है। इच्छा को बदलने में वे परवश ,निर्बल और अयोग्य नही है । अगर इच्छा को बदलने में वे परवश होते तो फिर मनुष्यजन्म की महिमा ही कहाँ रही ? और इच्छा (कामना) का त्याग करने की आज्ञा भी मैं कैसे दे सकता था।
Sunday, March 13, 2011
"अपना उत्तराखण्ड" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
Friday, February 25, 2011
"श्रीमद भगवद्गीता से ..............."
भगवान कहते हैं -----हे प्रथानंदन जो साधक अन्तसमय में किसी कारणवश योग से ,साधन से विचलित हो जाता है वह योगभ्रष्ट साधक मरने के बाद चाहे इस लोक में जनम ले या परलोक में जनम ले उसका पतन नही होता। तात्पर्य है कि उसकी योग में जितनी स्थिति बन चुकी है उससे नीचे नही गिर सकता। उसकी साधन सामग्री नष्ट नही होती। जैसे भरत मुनि जो भारतवर्ष का राज छोड़कर एकांत में तप करने चले गए थे मगर दयापरवश होकर एक हिरन के बच्चे में आसक्त हो गए जिससे दूसरे जनम में उन्हें हिरन बनना पड़ा परन्तु जितना त्याग,तप साधना उन्होंने पिछले जनम में की थी वह नष्ट नही हुयी ,उनको हिरन के जनम में भी वो सब याद था जो मनुष्य जनम में भी याद नही रहता अर्थात हिरन के जनम में भी उनका पतन नही हुआ। इसी तरह पहले जनम में मनुष्य जिनका स्वभाव सेवा करने का होता है वे किसी कारणवश योगभ्रष्ट हो भी जायें तो भी उनका वह स्वभाव नष्ट नही होता फिर चाहे वो अगले जनम में पशु पक्षी ही क्यूँ न बन जायें, परोपकार की भावना उनमें उसी तरह बनी रहती है। ऐसे बहुत से उदहारण आते हैं। एक जगह कथा होती थी तो एक कला कुत्ता वहां आकर बैठता था और कथा सुनता था । जब कीर्तन करते हुए कीर्तन मण्डली घूमती तो उस मंडली के साथ वह कुत्ता भी घूमता था।
भगवान कहते हैं कि जो मनुष्य कल्याणकारी कामों में लगा रहता है उसका कभी पतन नही होता क्यूंकि उसकी रक्षा मैं करता रहता हूँ फिर उसकी दुर्गति कैसे हो सकती है। जो मनुष्य मेरी तरफ़ चलता है वह मुझे बहुत ही प्यारा लगता है क्यूंकि वास्तव में वो मेरा ही अंश है संसार का नही उसका वास्तविक सम्बन्ध मेरे साथ है संसार के साथ नही । उसने मेरे साथ इस वास्तविक सम्बन्ध को पहचान लिया फिर उसकी दुर्गति कैसे हो सकती है ?उसका साधन कैसे नष्ट हो सकता है ? हाँ कभी कभी उसका साधा छूटा हुआ सा दीखता है तो ये स्थिति उसके अभिमान के कारण आती है और मैं उसीचेतना के लिए उसके सामने ऐसी घटना घटा देता हूँ जिससे व्याकुल होकर वह फिर मेरी तरफ़ चलने लगता है। जैसे गोपियों का अभिमान देखकर रास से ही अंतर्धान हो गया मैं तो सब गोपियाँ घबरा गयीं। जब वे विशेष व्याकुल हो गई तब मैं उन गोपियों के समुदाय के बीच में ही प्रगट हो गया और उनके पूछने पर कहा ---------तुम लोगो का भजन करता हुआ ही मैं अंतर्धान हुआ था तुम लोगो की याद और तुम लोगों का हित मेरे से छूटा नही है । इसका तात्पर्य ये है की अनंत जन्मों से भूला हुआ ये प्राणी जब केवल मेरी तरफ़ लगता है तब वह मेरे को प्यारा लगता है क्यूंकि उसने अनेक योनियों में बहुत दुःख पाए हैं और अब वह सन्मार्ग पर आ गया है। उसी तरह उसके हितों की रक्षा करता हूँ जैसे एक माँ अपने बच्चे की करती है।
तात्पर्य ये है कि जिसके भीतर एक बार साधन के संस्कार पड़ गए हैं वे संस्कार कभी नष्ट नही होते कारण कि उसी परमात्मा के लिए जो काम किया जाता है वह सत हो जाता है अर्थात उसका कभी अभाव नही होता। कल्याणकारी काम करने वाले किसी व्यक्ति की दुर्गति नही होती उसके जितने सद्भाव होते हैं ,जैसा स्वभाव होता है वह प्राणी किसी कारण वशात किसी नीच योनी में भी चला जाए तो भी उसके सद्भाव उसका कल्याण करना नही छोडेंगे ।
अब प्रश्न उठता है कि अजामिल जैसा शुद्ध ब्रह्मण भी वेश्यागामी हो गया,विल्वमंगल भी चिंतामणि नाम की वेश्या के वश में हो गए तो इनका इस जीवित अवस्था में ही पतन कैसे हो गया?इसका समाधान ये है कि उन लोगों का पतन हो गया ऐसा दीखता है मगर वास्तव में उनका पतन नही उद्धार ही हुआ है। अजामिल को लेने भगवान के पार्षद आए और विल्वमंगल भगवान के भक्त बन गए। इस प्रका रवो पहले भी सदाचारी थे और बाद में भी उद्धार हो गया सिर्फ़ बीच में उनकी दशा अच्छी नही थी। तात्पर्य ये हुआ की किसी विघ्न बाधा से, किसी असावधानी से उसके भावः और आचरण गिर सकते हैं ,परन्तु पहले का किया हुआ साधन कभी नष्ट नही होता ,उसकी वो पूँजी वैसी की वैसी ही रहती है और जब अच्छा संग मिलता है तब वो भावः तेजी से उदय होने लगते हैं और वो तेजी से भगवन की ओर चलने लगता है। इससे यही शिक्षा मिलती है कि हमें हर समय सावधान रहना चाहिए जिससे हम किसी कुसंगत में न पड़ जायें और अपना साधन न छोड़ दें।