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Tuesday, August 13, 2013

"कोढ़ में खाज" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मित्रों!
अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से
एक गीत पोस्ट कर रहा हूँ!
"कोढ़ में खाज"
निर्दोष से प्रसून भी डरे हुए हैं आज।
चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।

अश्लीलता के गान नौजवान गा रहा,
चोली में छिपे अंग की गाथा सुना रहा,
भौंडे सुरों के शोर में, सब दब गये हैं साज।
चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।

श्वान और विडाल जैसा मेल हो रहा,
नग्नता, निलज्जता का खेल हो रहा,
कृष्ण स्वयं द्रोपदी की लूट रहे लाज।
चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।

भटकी हुई जवानी है भारत के लाल की,
ऐसी है दुर्दशा मेरे भारत - विशाल की,
आजाद और सुभाष के सपनों पे गिरी गाज।
चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।

लिखने को बहुत कुछ है अगर लिखने को आयें,
लिख -कर कठोर सत्य किसे आज सुनायें,
दुनिया में सिर्फ मूर्ख के, सिर पे धरा है ताज।
चिड़ियों की कारागार में पड़े हुये हैं बाज।।

रोती पवित्र भूमि, आसमान रो रहा,
लगता है, घोड़े बेच के भगवान सो रहा,
अब तक तो मात्र कोढ़ था, अब हो गयी है खाज।
चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।

4 comments:

  1. समकालीन कुरूपता ,सुंदर कटाक्ष

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  2. वाकई में लगता है
    भगवान को भी
    शायद कुछ हो रहा !

    सुंदर !

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  3. वाकई !!!!! ...बढ़िया कटाक्ष

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  4. भटकी हुई जवानी है भारत के लाल की,
    ऐसी है दुर्दशा मेरे भारत - विशाल की,
    आजाद और सुभाष के सपनों पे गिरी गाज।
    चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।...

    सच कहा है ... आज का वातावरण तो ऐसा ही कहता है ... देश की दुर्दशा यही बयाँ कर रही है ...

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