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Wednesday, August 21, 2013

"शूद्र वन्दना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मित्रों!
अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से
"शूद्र वन्दना"
पूजनीय पाँव हैं, धरा जिन्हें निहारती।
सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।।
 

चरण-कमल वो धन्य हैं, 
जो जिन्दगी को दें दिशा,
वे चाँद-तारे धन्य हैं,
हरें जो कालिमा निशा,
प्रसून ये महान हैं, प्रकृति है सँवारती।
सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।।
 

जो चल रहें हैं, रात-दिन,
वो चेतना के दूत है,
समाज जिनसे है टिका,
वे राष्ट्र के सपूत है,
विकास के ये दीप हैं, मही इन्हें दुलारती।
सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।।
 

जो राम का चरित लिखें,
वो राम के अनन्य हैं,
जो जानकी को शरण दें,
वो वाल्मीकि धन्य हैं,
ये वन्दनीय हैं सदा, उतारो इनकी आरती।
सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।।

3 comments:

  1. जो राम का चरित लिखें,
    वो राम के अनन्य हैं,
    जो जानकी को शरण दें,
    वो वाल्मीकि धन्य हैं,
    ये वन्दनीय हैं सदा, उतारो इनकी आरती।
    सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।।

    बहुत सुन्दर उद्द्गार

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  2. बेहद सुन्दर रचना "-हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती ,स्वयं प्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती "रचना सहज होंठों पर आ गई।

    ReplyDelete
  3. पूजनीय पाँव हैं, धरा जिन्हें निहारती।
    सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।।
    बेहद सुन्दर रचना "-हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती ,स्वयं प्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती "रचना सहज होंठों पर आ गई।

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