मित्रों!
अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से
एक गीत पोस्ट कर रहा हूँ!
"कलियुग का व्यक्ति"
क्या शायर की भक्ति यही है?
जीवन की अभिव्यक्ति यही है! शब्द कोई व्यापार नही है, तलवारों की धार नही है, राजनीति परिवार नही है, भाई-भाई में प्यार नही है, क्या दुनिया की शक्ति यही है? जीवन की अभिव्यक्ति यही है! निर्धन-निर्धन होता जाता, अपना आपा खोता जाता, नैतिकता परवान चढ़ाकर, बन बैठा धनवान विधाता, क्या जग की अनुरक्ति यही है? जीवन की अभिव्यक्ति यही है! छल-प्रपंच को करता जाता, अपनी झोली भरता जाता, झूठे आँसू आखों में भर- मानवता को हरता जाता, हाँ कलियुग का व्यक्ति यही है? जीवन की अभिव्यक्ति यही है! |
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Friday, August 9, 2013
"कलियुग का व्यक्ति" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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ReplyDeleteछल-प्रपंच को करता जाता,
अपनी झोली भरता जाता,
झूठे आँसू आखों में भर-
मानवता को हरता जाता,
हाँ कलियुग का व्यक्ति यही है?
जीवन की अभिव्यक्ति यही है!.....जीवन की सच्चाई यही है ...सुन्दर कविता ...
छल-प्रपंच को करता जाता,
ReplyDeleteअपनी झोली भरता जाता,
झूठे आँसू आखों में भर-
मानवता को हरता जाता,
हाँ कलियुग का व्यक्ति यही है?
जीवन की अभिव्यक्ति यही है!
bahut sarthak abhivyakti .
सशक्त विचाराभिव्यक्ति यथार्थ का प्रतिबिम्बन और विडंबन। चर्चा मंच पर हमें ले आते रहने के लिए आपका आभार हृदय से।
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