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Tuesday, August 6, 2013

"कैसे जी पायेंगे?" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मित्रों!
आज अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से
एक कविता पोस्ट कर रहा हूँ!
"कैसे जी पायेंगे?"
नम्रता उदारता का पाठ, अब पढ़ाये कौन?
उग्रवादी छिपे जहाँ सन्तों के वेश में।

साधु और असाधु की पहचान अब कैसे हो,
दोनो ही सुसज्जित हैं, दाढ़ी और केश में।

कैसे खेलें रंग-औ-फाग, रक्त के लगे हैं दाग,
नगर, प्रान्त, गली-गाँव, घिरे हत्या-क्लेश में।

गांधी का अहिंसावाद, नेहरू का शान्तिवाद,
हुए निष्प्राण, हिंसा के परिवेश में ।

इन्दिरा की बलि चढ़ी, एकता में फूट पड़ी,
प्रजातन्त्र हुआ बदनाम देश-देश में।

मासूमों की हत्याये दिन-प्रतिदिन होती,
कैसे जी पायेंगे, कसाइयों के देश में।

3 comments:

  1. समसामयिक भू -परिवेश (आलमी माहौल )से रु -ब-रु है यह रचना।


    मासूमों की हत्याये दिन-प्रतिदिन होती,
    कैसे जी पायेंगे, कसाइयों के देश में।

    (हत्याएं )

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  2. सच्ची कहानी कहती कविता...
    ~सादर!!!

    ReplyDelete
  3. उत्कृष्ट हिन्दी ग़ज़ल रूपी कविता ....

    कैसे जी पायेंगे, कसाइयों के देश में।---सच है हम सब खुद ही कसाई बन गए हैं....

    आदमी मारे-मरे, पीटे-पिटे वो आदमी|
    चोरी करे, लुटे-लुटे,जो जेल जाए आदमी |


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