मित्रों!
अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से
एक गीत
"सम्बन्ध"
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।
अनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गये हैं।। न वो प्यार चाहता है, न दुलार चाहता है, जीवित पिता से पुत्र, अब अधिकार चाहता है, सब टूटते बिखरते, परिवार हो गये हैं। सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।। घूँघट की आड़ में से, दुल्हन का झाँक जाना, भोजन परस के सबको, मनुहार से खिलाना, ये दृश्य देखने अब, दुश्वार हो गये हैं। सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।। वो सास से झगड़ती, ससुरे को डाँटती है, घर की बहू किसी का, सुख-दुख न बाटँती है, दशरथ, जनक से ज्यादा बेकार हो गये हैं। सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।। जीवन के हाँसिये पर, घुट-घुट के जी रहे हैं, माँ-बाप सहमे-सहमे, गम अपना पी रहे हैं, कल तक जो पालते थे, अब भार हो गये हैं। सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।। |
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Thursday, August 29, 2013
"सम्बन्ध" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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संबंधो एम् भावनाओ का क्रमिक ह्रास ………………. आज की कडवी सच्चाई
ReplyDeletesarthak prastuti .aabhar
ReplyDeleteभाव प्रधान व्यतीत को खंगालती सुन्दर रचना
ReplyDeleteघूँघट की आड़ में से, दुल्हन का झाँक जाना,
भोजन परस के सबको, मनुहार से खिलाना,
ये दृश्य देखने अब, दुश्वार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।