मित्रों!
अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से
एक ग़ज़ल
"प्रीत का मौसम"
दिल हमारा अब दिवाना हो गया है।
फिर शुरू मिलना-मिलाना हो गया है।।
हाथ लेकर चल पड़े हम साथ में,
प्रीत का मौसम, सुहाना हो गया है।
इक नशा सा, जिन्दगी में छा गया,
दर्द-औ-गम, अपना पुराना हो गया है।
सब अधूरे् स्वप्न पूरे हो गये,
मीत सब अपना, जमाना हो गया है।
दिल के गुलशन में बहारें छा गयीं,
अब चमन, अपना ठिकाना हो गया है।
तार मन-वीणा के, झंकृत हो गये,
सुर में सम्भव गीत गाना हो गया है।
मन-सुमन का “रूप” अब खिलने लगा,
बन्द अब, आँसू बहाना हो गया है।
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Friday, September 13, 2013
"प्रीत का मौसम" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुती।
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