मित्रों! अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से
एक कविता
"दामाद बहुत ही भाता है"
पाहुन का है अर्थ घुमक्कड़,
यम का दूत कहाता है। सास-ससुर की छाती पर, बैठा रहता जामाता है।।
खाता भी, गुर्राता भी है, सुनता नही सुनाता है। बेटी को दुख देता है तो, सीना फटता जाता है।।
चंचल अविरल घूम रहा है , ठहर नही ये पाता है। धूर्त भले हो किन्तु मुझे, दामाद बहुत ही भाता है।।
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शास्त्री जी , ये तो दो उल्टी बातें हो गईं। …छाती पर बैठा है और भाता भी है ? वाह
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ReplyDeleteमज़बूरी में भाता है!
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हा... हा.... हा...... बहुत खूब.....
ReplyDeletebadhiya katksh .. :)
ReplyDeletebadhiya katksh .. :)
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