मित्रों!
अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से एक गीत
"उन्हें पढ़ना नहीं आता"
मिलन के गीत मन ही मन,
हमेशा गुन-गुनाता था। हृदय का शब्द होठों पर, कभी बिल्कुल न आता था। मुझे कहना नही आया। उन्हें सुनना नही भाया।। कभी जो भूलना चाहा, जुबां पर उनकी ही रट थी। अन्धेरी राह में उनकी, चहल कदमी की आहट थी। मुझे सपना नही आया। उन्हें अपना नही भाया।। बहुत से पत्र लाया था, मगर मजमून कोरे थे। शमा के भाग्य में आये, फकत झोंकें-झकोरे थे। मुझे लिखना नही आया। उन्हें पढ़ना नही आया।। बने हैं प्रीत के क्रेता, जमाने भर के सौदागर। मुहब्बत है नही सौदा, सितम कैसे करूँ उन पर। मुझे लेना नही आया। उन्हे देना नही भाया।। |
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Monday, September 30, 2013
""उन्हें पढ़ना नहीं आता" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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