मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से
एक गीत
कल्पनाएँ डर गयी हैं,
भावनाएँ मर गयीं हैं, देख कर परिवेश ऐसा। हो गया क्यों देश ऐसा??
पक्षियों का चह-चहाना ,
लग रहा चीत्कार सा है। षट्पदों का गीत गाना , आज हा-हा कार सा है। गीत उर में रो रहे हैं, शब्द सारे सो रहे हैं, देख कर परिवेश ऐसा। हो गया क्यों देश ऐसा?? एकता की गन्ध देता था, सुमन हर एक प्यारा, विश्व सारा एक स्वर से, गीत गाता था हमारा, कट गये सम्बन्ध प्यारे, मिट गये अनुबन्ध सारे , देख कर परिवेश ऐसा। हो गया क्यों देश ऐसा?? आज क्यों पागल, स्वदेशी हो गया है? रक्त क्यों अपना, विदेशी हो गया है? पन्थ है कितना घिनौना, हो गया इन्सान बौना, देख कर परिवेश ऐसा। हो गया क्यों देश ऐसा?? आज भी लोगों को, पावस लग रही है, चाँदनी फिर क्यों, अमावस लग रही है? शस्त्र लेकर सन्त आया, प्रीत का बस अन्त आया, देख कर परिवेश ऐसा। हो गया क्यों देश ऐसा?? |
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Thursday, January 23, 2014
"हो गया क्यों देश ऐसा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24 .01.2014) को "बचपन" (चर्चा मंच-1502) पर लिंक की गयी है.
ReplyDeletewahhh samayik or sarthak prastuti ..sadar naman
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
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