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Saturday, October 12, 2013

"पग-पग पर मिलते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मित्रों!
अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से

एक गीत
"पग-पग पर मिलते हैं"
आशा और निराशा के क्षण,
पग-पग पर मिलते हैं।
काँटों की पहरेदारी में,
ही गुलाब खिलते हैं।

पतझड़ और बसन्त कभी,
हरियाली आती है।
सर्दी-गर्मी सहने का,
सन्देश सिखाती है।
यश और अपयश साथ-साथ,
दायें-बाये चलते हैं।
काँटो की पहरेदारी में,
ही गुलाब खिलते हैं।

जीवन कभी कठोर कठिन,
और कभी सरल सा है।
भोजन अमृततुल्य कभी,
तो कभी गरल सा है।
सागर के खारे जल में,
ही मोती पलते हैं।
काँटो की पहरेदारी में,
ही गुलाब खिलते हैं।

3 comments:

  1. सार्थक आशावाद

    जीवन कभी कठोर कठिन,
    और कभी सरल सा है।
    भोजन अमृततुल्य कभी,
    तो कभी गरल सा है।
    सागर के खारे जल में,
    ही मोती पलते हैं।
    काँटो की पहरेदारी में,
    ही गुलाब खिलते हैं।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    और हमारी तरफ से दशहरा की हार्दिक शुभकामनायें

    How to remove auto "Read more" option from new blog template

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  3. बहुत सुन्दर रचना ..अच्छे भाव और सीख के साथ
    आप सभी मित्रों को सपरिवार दशहरा की हार्दिक शुभ कामनाएं

    भ्रमर ५

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