मित्रों!
अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से एक गीत
"पग-पग पर मिलते हैं"
आशा और निराशा के क्षण,
पग-पग पर मिलते हैं।
काँटों की पहरेदारी में,
ही गुलाब खिलते हैं।
पतझड़ और बसन्त कभी,
हरियाली आती है।
सर्दी-गर्मी सहने का,
सन्देश सिखाती है।
यश और अपयश साथ-साथ,
दायें-बाये चलते हैं।
काँटो की पहरेदारी में,
ही गुलाब खिलते हैं।
जीवन कभी कठोर कठिन,
और कभी सरल सा है।
भोजन अमृततुल्य कभी,
तो कभी गरल सा है।
सागर के खारे जल में,
ही मोती पलते हैं।
काँटो की पहरेदारी में,
ही गुलाब खिलते हैं।
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Saturday, October 12, 2013
"पग-पग पर मिलते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सार्थक आशावाद
ReplyDeleteजीवन कभी कठोर कठिन,
और कभी सरल सा है।
भोजन अमृततुल्य कभी,
तो कभी गरल सा है।
सागर के खारे जल में,
ही मोती पलते हैं।
काँटो की पहरेदारी में,
ही गुलाब खिलते हैं।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteऔर हमारी तरफ से दशहरा की हार्दिक शुभकामनायें
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ..अच्छे भाव और सीख के साथ
आप सभी मित्रों को सपरिवार दशहरा की हार्दिक शुभ कामनाएं
भ्रमर ५