मित्रों!
अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से एक गीत
"संगीत सुनाया क्यों"
मेरे वीराने उपवन में,
सुन्दर सा सुमन सजाया क्यों?
सूने-सूने से मधुबन में,
गुल को इतना महकाया क्यों?
मधुमास बन गया था पतझड़,
संसार बन गया था बीहड़,
लू से झुलसे, इस जीवन में,
शीतल सा पवन बहाया क्यों?
ना सेज सजाना आता था,
मुझको एकान्त सुहाता था,
चुपके से आकर नयनों में,
सपनों का भवन बनाया क्यों?
मैं मन ही मन में रोता था,
अपना अन्तर्मन धोता था,
चुपके से आकर पीछे से,
मुझको दर्पण दिखलाया क्यों?
ना ताल लगाना आता था,
ना साज बजाना आता था,
मेरे वैरागी कानों में,
सुन्दर संगीत सुनाया क्यों?
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Wednesday, October 16, 2013
"संगीत सुनाया क्यों" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह बहुत सुन्दर भाव
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