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Wednesday, October 23, 2013

"हमारे लिए" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्य संग्रह "सुख का सूरज" से
एक गीत
"हमारे लिए"
जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए, 
दे रहे हैं हमें शुद्ध-शीतल पवन! 
खिलखिलाता इन्हीं की बदौलत सुमन!! 
रत्न अनमोल हैं ये हमारे लिए। 
जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए।।

आदमी के सितम-जुल्म को सह रहे, 
परकटे से तने निज कथा कह रहे, 
कर रहे हम इन्हीं का हमेशा दमन! 
सह रहे ये सभी कुछ हमारे लिए। 
जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए।। 

कर रहे जड़-जगत पर ये उपकार हैं, 
वन सभी के लिए मुफ्त उपहार हैं, 
रोग और शोक का होता इनसे शमन! 
दूत हैं ये धरा के हमारे लिए। 
जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए।। 

ये हमारी प्रदूषित हवा पी रहे, 
घोटकर हम इन्ही को दवा पी रहे, 
देवताओं का हम कर रहे हैं दमन! 
तन हवन कर रहे ये हमारे लिए। 
जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए।।

2 comments:

  1. जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए,
    दे रहे हैं हमें शुद्ध-शीतल पवन!
    खिलखिलाता इन्हीं की बदौलत सुमन!!
    रत्न अनमोल हैं ये हमारे लिए।
    जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए।।

    पूरी बंदिश एक रागिनी इस मंद मंद समीर सा प्रवाह लिए बहे जा रही है कहती हुई -

    महाकाल के हाथ पे गुल होते हैं पेड़ ,

    सुषमा तीनों लोक की कुल होते हैं पेड़।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

    ReplyDelete

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